बढ़िया रचना है :कलाई पर बंधा है समय मारता है पीठ पर चाबुक और दौड़ पड़ता हूँ मैं घोड़े की तरह आगे और आगे अंतहीन घडी मुस्कुराती है कलाई पर बंधी बंधी मुझे हाँफते देख
समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ . ram ram bhai शनिवार, 22 सितम्बर 2012 असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
बढ़िया रचना है :कलाई पर बंधा है समय मारता है पीठ पर चाबुक और दौड़ पड़ता हूँ मैं घोड़े की तरह आगे और आगे अंतहीन घडी मुस्कुराती है कलाई पर बंधी बंधी मुझे हाँफते देख
समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ . ram ram bhai शनिवार, 22 सितम्बर 2012 असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
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जवाब देंहटाएंहम सभी घड़ी के चाबुक के आगे बेबस हैं और इसी तरह दौड़ते रहते हैं... हाँफते हाँफते.
जवाब देंहटाएं************
प्यार एक सफ़र है, और सफ़र चलता रहता है...
कभी कभी लगता है , सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर चले जाएँ जहाँ हांफना न पड़े !
जवाब देंहटाएंघडी मुस्कुराती है
जवाब देंहटाएंकलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख
सटीक
गहन भाव ...
जवाब देंहटाएंघडी मुस्कुराती है
जवाब देंहटाएंकलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख
बहुत सही कहा है आपने इन पंक्तियों में ...
घड़ी जीवन भर दौड़ाये रहती है, हमने तो पहनना ही छोड़ दिया है।
जवाब देंहटाएंसमय हमेशा अपने गति चलता रहता,,,उसके आगे हम बेबस है,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
उम्दा.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना है :कलाई पर
जवाब देंहटाएंबंधा है
समय
मारता है
पीठ पर चाबुक
और दौड़ पड़ता हूँ मैं
घोड़े की तरह
आगे
और आगे
अंतहीन
घडी मुस्कुराती है
कलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख
समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ .
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
बढ़िया रचना है :कलाई पर
जवाब देंहटाएंबंधा है
समय
मारता है
पीठ पर चाबुक
और दौड़ पड़ता हूँ मैं
घोड़े की तरह
आगे
और आगे
अंतहीन
घडी मुस्कुराती है
कलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख
समय सवारी करता मेरी ,मैं हूँ एक मुसाफिर यारों ,समय चक्र से बंधा हुआ हूँ .
ram ram bhai
शनिवार, 22 सितम्बर 2012
असम्भाव्य ही है स्टे -टीन्स(Statins) से खून के थक्कों को मुल्तवी रख पाना
मैं तो कलाई पर घड़ी बांधता ही नहीं.. धडकनों की टिक-टिक के साथ दोस्ती कर ली है.. देखें कब कहती हैं ये आकर मुझसे कि चल अब समय हो गया है तेरा!!
जवाब देंहटाएंसमय बहुत बलवान है. सुंदर कविता.
जवाब देंहटाएंबधाई.
अंतहीन घड़ियों में खत्म होता समय ... हाथ की घडियां के हिसाब से ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...
समय की चाबुक की मार से ही तो सब बेहाल हैं..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
कलाई पे घड़ी भी समय का ही एक अनमोल उपहार है...जो हर वक़्त चलते रहने का एहसास दिलाता रहता है...अपने 'होने' का एहसास...~सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर !!!
घड़ी मुस्कुराती है .. इसलिए कि समय के आगे कौन भाग पाया है और समय के पीछे भागने वाला कब टिक पाया है?
जवाब देंहटाएंसच है जानते हैं समझते हैं..फिर भी कुछ कर नहीं पाते..घड़ी की चाबुक में दौड़ते ही रहते हैं हम।
जवाब देंहटाएंघोडे़ की तरह दौड़ते हैं
जवाब देंहटाएंइसलिये हाँफ जाते हैं
हमारी तरह दौड़ के देखो
गधे कभी नहीं हाँफते हैं
दौड़ते चले जाते हैं
भूल जाते हैं हाँफने की बात !
मतलब कलाई पर बंधी घड़ी पर भी आप इतनी गहरी बात कह सकते हैं और वो भी मात्र एक पंक्ति में...वाह!!!!! :)
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