जो होते हैं
औसत
उनका कुछ भी नहीं
न धरती, न आसमान,
न हवा न पानी
न होते हैं वे वोट ही
क्योंकि
वे लड़ नहीं सकते
कोई युद्ध
वे बन नहीं सकते
किसी क्रांति का हिस्सा
उनमे जोश का
गुबार नहीं होता
वे इश्वर के
अनचाहे संतान की तरह
होते हैं
अपने ही भरोसे
चूँकि औसत लोग
तन या मन से विकलांग नहीं होते
नहीं बनती कोई विकलांग नीति उनके लिए
उनके हिस्से
नहीं आती कोई
राजकोषीय सहायता
कोई विशेष योजना
वे हिस्सा नहीं होते
तथाकथित 'इन्क्लूसिव ग्रोथ' के
औसत लोग
न हाशिये के ऊपर होते हैं
न होते हैं हाशिये के पार
उनकी न कोई मंजिल होती है
न कोई राह
मैं
एक औसत व्यक्ति हूँ
संज्ञाहीन
इन &*^%$%$# से बहुत अच्छे हैं औसत लोग !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया ..
जवाब देंहटाएंऔसत लोगों के कारण ही ये दुनिया इतनी हसीन है ।
जवाब देंहटाएंसंसार को खास बनाता एक आम समुदाय..... सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंआज तो निशब्द कर दिया ……………………
जवाब देंहटाएंसुंदर :)
जवाब देंहटाएंआज 03 - 11 -12 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं.... आज की वार्ता में ... चलो अपनी कुटिया जगमगाएँ .ब्लॉग 4 वार्ता ... संगीता स्वरूप.
यदि औसत लोग न हो तो विशेष की महत्ता ही नहीं रहेगी ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंऔसत लोग ही तो विशेष बनाते हैं लोगो को
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
बहुत खूब,,,,निशब्द करती रचना,,,,बधाई स्वीकारें,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : समय की पुकार है,
कविता के मामले मे तो कुछ नहीं कहता पर आप क्या है यह तो मिलने पर बात होगी !
जवाब देंहटाएंपृथ्वीराज कपूर - आवाज अलग, अंदाज अलग... - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
निशब्द करती सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंसच कहा, न ही वे स्वयं को इन सीमाओं के ऊपर ही उठा पाते हैं।
जवाब देंहटाएंअरुण राय जी, इस कविता को अपने से न जोड़ें। अन्तिम तीन पंक्तियां हटा दें तो यह कविता मुकम्मल है।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरव जी. हटा देता हूँ...
हटाएंधरती,आसमान,हवा और पानी का
जवाब देंहटाएंथोड़ा बहुत हिस्सा है भी
तो बस औसत आदमी के ही हिस्से
वही लड़ता है युद्ध
करता है क्रांति
उसके जोश से ही
बदली हैं सरकारें हाल की
औसत आदमी भी है नीतियों का हिस्सा
यह बात और है
कि लाभ पहुंचता नहीं उस तक
और यही नाकामी
उसे बनाए रखती है हाशिए पर
कभी इधर तो कभी उधर
औसत आदमी जानता है
गम हों कि खुशी दोनों
कुछ देर के साथी हैं
फिर रस्ता ही रस्ता है
हंसना है न रोना है....
मेरी कविता से निश्चित रूप से बेहतर कविता राधारमन जी ने बना दी है... आभार...
हटाएंऔसत लोग
जवाब देंहटाएंन हाशिये के ऊपर होते हैं
न होते हैं हाशिये के पार...बहुत अच्छी कविता
औसत लोग
जवाब देंहटाएंन हाशिये के ऊपर होते हैं
न होते हैं हाशिये के पार
उनकी न कोई मंजिल होती है
न कोई राह ..true very nice
औसतन हम भी औसत ही हैं।
जवाब देंहटाएंऔसत भी कई बार अपना जलवा दिखाते हैं ..!
जवाब देंहटाएंऔसत लोग अगर मिल जाएं तो चिंगारी खड़ी कर सकता हैं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रभावी रचना ...