2010 में एक कविता लिखी थी "माँ तुम्हारा चूल्हा" और आज चर्चा है सभी अख़बारों में कि देश के स्वस्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक है - चूल्हा (हाउस होल्ड एयर पाल्यूशन). संयुक्त राष्ट्र संघ से डबल्यू एच ओ तक इसे साबित करने पर तुला है। आश्चर्य है कि विकसित देशो में ए सी, गाड़ियाँ, हवाई जहाज़ आदि आदि धरती को कितना नुकसान पहुचते हैं, इस पर कोई अध्यनन नहीं होता। वह दिन दूर नहीं जब लकड़ी को इंधन के रूप में इस्तेमाल पर पाबंदी होगी और सोचिये कि कौन प्रभावित होगा, साथ ही पढ़िए मेरी कविता भी।
माँ
बंद होने वाला है
तुम्हारा चूल्हा
जिसमे झोंक कर
पेड़ की सूखी डालियाँ
पकाती हो तुम खाना
कहा जा रहा है
तुम्हारा चूल्हा नहीं है
पर्यावरण के अनुकूल
माँ
मुझे याद है
बीन लाती थी तुम
जंगलों, बगीचों से
गिरे हुए पत्ते
सूखी टहनियां
जलावन के लिए
नहीं था तुम्हारे संस्कार में
तोडना हरी पत्तियाँ
जब भी टूटती थी
कोई हरी पत्ती
तुम्हे उसमे दिखता था
मेरा मुरझाया चेहरा
जबकि
कहा जा रहा है
तुम्हारे संस्कार नहीं हैं
पर्यावरण के अनुकूल
तुम्हारा चूल्हा
प्रदूषित कर रहा है
तीसरी दुनिया को
पहली और
दूसरी दुनिया के लोग
एक जुट हो रहे हैं
हो रहे हैं बड़े बड़े सम्मेलन
तुम्हारे चूल्हे पर
तुम्हारे चूल्हे के ईंधन पर
हो रहे हैं तरह तरह के शोध
मापे जा रहे हैं
कार्बन के निशान
तुम्हारे घर आँगन की
हवाओं में
वातानुकूलित कक्षों में
हो रही है जोरदार बहसे
कहा जा रहा है कि
तुम प्रदूषित कर रही हो
अपनी धरती
गर्म कर रही हो
विश्व को
और तुम्हारे चूल्हे की ओर से बोलने वाले
घिघियाते से प्रतीत होते हैं
प्रायोजित से लग रहे है
शोध अनुसन्धान
और तम्हारे चूल्हे के प्रतिनिधि भी
माँ !
मौन हैं सब
यह जानते हुए कि
जीवन भर जितने पत्ते और टहनियां
जलाओगी तुम,
उतना कार्बन
एक भवन के केन्द्रीयकृत वातानुकूलित यन्त्र से
उत्सर्जित होगा कुछ ही घंटे में
वे लोग छुपा रहे हैं
तुमसे तथ्य भी
नहीं बता रहे कि
तुम्हारा चूल्हा
कार्बन न्यूट्रल है
क्योंकि यदि तुम्हारे चूल्हे में
जलावन न भी जले फिर भी
कार्बन उत्सर्जन तो होगा ही
लकड़ियों से
बस उसकी गति होगी
थोड़ी कम
और तुम्हारा ईंधन तो
घरेलू है,
उगाया जा सकता है
आयात करने की ज़रूरत नहीं
लेकिन बंद होना है
तुम्हारे चूल्हे को
तुम्हारे अपने ईंधन को
और जला दी जाएगी
तुम्हारी आत्मनिर्भरता
तुम्हारे चूल्हे के साथ ही .
माँ ! एक दिन
नहीं रहेगा तुम्हारा चूल्हा !
तुम प्रदूषित कर रही हो
अपनी धरती
गर्म कर रही हो
विश्व को
और तुम्हारे चूल्हे की ओर से बोलने वाले
घिघियाते से प्रतीत होते हैं
प्रायोजित से लग रहे है
शोध अनुसन्धान
और तम्हारे चूल्हे के प्रतिनिधि भी
माँ !
मौन हैं सब
यह जानते हुए कि
जीवन भर जितने पत्ते और टहनियां
जलाओगी तुम,
उतना कार्बन
एक भवन के केन्द्रीयकृत वातानुकूलित यन्त्र से
उत्सर्जित होगा कुछ ही घंटे में
वे लोग छुपा रहे हैं
तुमसे तथ्य भी
नहीं बता रहे कि
तुम्हारा चूल्हा
कार्बन न्यूट्रल है
क्योंकि यदि तुम्हारे चूल्हे में
जलावन न भी जले फिर भी
कार्बन उत्सर्जन तो होगा ही
लकड़ियों से
बस उसकी गति होगी
थोड़ी कम
और तुम्हारा ईंधन तो
घरेलू है,
उगाया जा सकता है
आयात करने की ज़रूरत नहीं
लेकिन बंद होना है
तुम्हारे चूल्हे को
तुम्हारे अपने ईंधन को
और जला दी जाएगी
तुम्हारी आत्मनिर्भरता
तुम्हारे चूल्हे के साथ ही .
माँ ! एक दिन
नहीं रहेगा तुम्हारा चूल्हा !
bhavnaon se paripoorn......bahot achchi kavita.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (15-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
माँ ! एक दिन
जवाब देंहटाएंनहीं रहेगा तुम्हारा चूल्हा !
बहुत उम्दा भावनात्मक सृजन,,,, बधाई अरुण जी
recent post हमको रखवालो ने लूटा
धुँयें को विकास यज्ञ मान चुके हैं सब।
जवाब देंहटाएंबापू का
जवाब देंहटाएंखेत-खलियान
-बैल
हल-हँसुआ
बुआई-कटाई
गुड़-धान
जब नहीं बचा तो
माँ का चूल्हा कहाँ बचेगा
बेहतरीन कविता के लिए साधुवाद.
लेकिन बंद होना है
जवाब देंहटाएंतुम्हारे चूल्हे को
तुम्हारे अपने ईंधन को
और जला दी जाएगी
तुम्हारी आत्मनिर्भरता
तुम्हारे चूल्हे के साथ ही .
....बिल्कुल सच...विकास के नाम पर परम्पराओं की बलि..बहुत सुन्दर और भावमयी रचना..
क्या बात है! बहुत ही सटीक कविता...
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा सुन्दर सटीक भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और सुन्दर कविता....
बधाई इस भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए.
सादर
अनु
sare sakshya nazarandaz karke ek chulhe ke liye itani kavayade ...sach aatmnirbharta khatm karne ke bahane...
जवाब देंहटाएंशोध पूर्ण कविता .... भावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंमाँ ! एक दिन
जवाब देंहटाएंनहीं रहेगा तुम्हारा चूल्हा !
बेहद सशक्त भाव ... लिये उत्कृष्ट लेखन
भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट....
तथ्यों के साथ चूल्हे की उपयोगिता और पर्यावरण संरक्षणता को परिभाषित करती एक उत्कृष्ट रचना - आभार
जवाब देंहटाएंBHADHIYA KAVITA KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR
जवाब देंहटाएंSHUBH KAMNAAYEN
सामायिक विषय को उठाया है अरुण जी आपने हर बार की तरह.
जवाब देंहटाएंतथ्यपूर्ण कविता.
मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंहर वो चीज़ जो आत्मिकता से जुडी है ... धीरे धीरे खत्म हो रही है ... बहुत प्रभावी ..
कविता के माध्यम से आपने पर्यावरण के नाम पर हो रहे षड़यंत्र की खूब पड़ताल की है।
जवाब देंहटाएंअरे मेरी टिप्पणी कहाँ गई । अरुण जी कविता की प्रशंसा के साथ मैंने टिप्पणी में अपने मेल का उत्तर देने को भी लिखा था । आपने कबसे अपने मेल चैक नही किये । हाँ कविता के विषय में एक बार फिर कि लकडी जलाने से उतना प्रदूषण नही होता जितना प्लास्टिक और पैट्रोलियम जलाने से ,यह बात कथित समझदारों की समझ में आनी चाहिये । कविता सटीक है और खूबसूरत भी ।
जवाब देंहटाएं♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
लेकिन बंद होना है
तुम्हारे चूल्हे को
तुम्हारे अपने ईंधन को
और जला दी जाएगी
तुम्हारी आत्मनिर्भरता
तुम्हारे चूल्हे के साथ ही .
माँ ! एक दिन
नहीं रहेगा तुम्हारा चूल्हा !
सारे दूकानदार एक ही थैली के चट्टे बट्टे लगते हैं ...
आदरणीय अरुण चन्द्र रॉय जी
आपकी पहचान के अनुरूप ही अलग मिजाज़ की कविता है ...
साधुवाद !
आपकी कविता ने बचपन की यादें ताज़ा कर दीं
घर घर में ये ही चूल्हे होते थे और पर्यावरण आज की अपेक्षा हज़ार गुना बेहतर !!
इन बड़े दूकानदारों का दिमागी प्रदूषण अभी कितना फैलेगा ...
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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bahut Sarthak Rachna ...Badhai...bachapan me jo dekha wo yaade taza ho gayi
जवाब देंहटाएंhttp://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post.html