आज मजदूर दिवस है. आज के ही दिन वर्ष 1991 में मेरी पहली कविता "मजदूर" धनबाद, झारखण्ड से प्रकाशित दैनिक जनमत में छपी थी . उसके बाद धनबाद में मजदूरों के बीच थोडा बहुत काम किया . एशिया के प्रसिद्द मजदूर कालोनी भूली में दोस्तों के साथ मिलकर निःशुल्क ट्यूशन पढाया, पुस्तकालय खोला,
पानी बिजली की लड़ाई लड़ी और फिर एक दिन अचानक सब छोड़ मैनेजमेंट की पढाई करने
धनबाद से जो बाहर निकला सो फिर लौटा नहीं . एक बोझ मन में अब भी है. शायद
ही कभी उतरे। पिछले साल मई में ही नेशनल बूक ट्रस्ट द्वारा आयोजित शिमला पुस्तक मेला में अपने प्रकाशन के साथ पहली बार शिमला गया और वहां माल
रोड पर कुलियों को देख शिमला का आनंद जाता रहा और एक कविता बनी। साहित्यिक
पत्रिका हंस के मई अंक में ही यह कविता प्रकाशित हुई है . शिमला के साथ
साथ पहाड़ो के तमाम कुलियों को मजदूर दिवस पर समर्पित कविता आपसे साझा करता
हूँ
माल रोड, शिमला
गोरखा युद्ध से लौटे
अपने सेनापति के लिए
ब्रिटिश साम्राज्य का
उपहार था शिमला
जिसे कालांतर में बनाई गई
गुलाम भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी
कहा जाता है
कालों को अनुमति नहीं थी
माल रोड तक पहुचने की
और गुलामी का प्रतीक
माल रोड शिमला में
अब भी पाए जाते हैं कुली
जो अपनी झुकी हुई पीठ पर
लादते हैं अपने से दूना वज़न तक
जीवन रेखा हैं ये
इस शहर की
पीठ पर
लाते हैं उठा
माल रोड की चमक दमक
रौनक
और किनारे पडी
किसी लकड़ी की बेंच के नीचे बैठ
सुस्ताते पाए जाते हैं
आँखों में सन्नाटा लिए
आँखे नहीं मिलाते हैं
ये कुली
क्योंकि झुकी हुई पीठ सेआदत हैजमीन को देखने की
ख़ुशी से भरे चेहरों के बीच
अकेले होते हैं
ये कुली
जब भी आता है जिक्र
माल रोड या शिमला का
नहीं होता है जिक्र पीठ पर वजन उठाये
इन कुलियों का
इस चमक के पीछे
घुप्प अँधेरा होता है
इनकी जिंदगी में
दासता के पदचिन्ह
और गहरे होते जाते हैं
जब भी उठाते हैं
अपनी पीठ पर वजन
और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
ये कुली.
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज के (१ मई, २०१३, बुधवार) ब्लॉग बुलेटिन - मज़दूर दिवस जिंदाबाद पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
जवाब देंहटाएंदासता के चिन्ह हर जगह बिखरे पड़े हैं..हम ही उन्हें देखकर अनदेखा कर देते हैं।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंमजदूरों के जीवन को सच्ची तौर पर बयां करती रचना
मजदूर दिवस पर सार्थक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
विचार कीं अपेक्षा
आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुशरण करें
jyoti-khare.blogspot.in
कहाँ खड़ा है आज का मजदूर------?
मजबूर दिवस पर मनभावन प्रस्तुति,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: मधुशाला,
बधाई अरुण भाई ...
जवाब देंहटाएंइनके दर्द को बांटने के लिए बहुत कम कलमें उठी हैं !
आभार
बहुरत ही संवेदनशील ...
जवाब देंहटाएंमजदूरों के दर्द को करीब से देखा है आपने इसलिए इतना द्रवित हो सोच पाए हैं आप ... अंग्रेजों की जगह अब अपने देश के रहनुमाओं ने ले ली है .... बधाई इस रचना पे अरुण जी ...
दासता के पदचिन्ह
जवाब देंहटाएंऔर गहरे होते जाते हैं
जब भी उठाते हैं
अपनी पीठ पर वजन
और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
ये कुली..................................................एक दर्द है आपकी रचना में .........................
मजबूर दिवस पर बहुत ही सटीक संवेदनशील प्रस्तुति, ...
जवाब देंहटाएंबहुत गहन एवं सशक्त ....लाजवाब प्रस्तुति अरुण जी ....!!
जवाब देंहटाएंPlease return the advance payment and original manuscript that you are holding for last 8 months with you
जवाब देंहटाएंIts very unprofessional