चीन लद्दाख में डेरा जमाये बैठा है. जब रक्षामंत्री प्रधान मंत्री के पास गए होंगे कि सेना को आदेश दीजिये कि चीन के साथ सख्ती दिखाएँ तो उन्होंने वित्त मंत्री से पूछा होगा. वित्त मंत्री जी के पास देश भर से व्यापारियों के फोन आये होंगे कि माई बाप, चीन के माल के बिना न तो प्लांट चलेंगे न खुदरा बाज़ार, न कपडा बाज़ार की रौनक रहेगी न इलेक्ट्रोनिक बाज़ार की . देश के अर्थव्यवस्था के लगभग दस प्रतिशत हिस्से पर चीन का परोक्ष कब्ज़ा है. हम चीन से लगभग 44 मिलियन यु एस डालर का माल आयात करते हैं और निर्यात केवल 15 मिलियन यु एस डालर। जिस देश में तमाम मन्युफेक्चारिंग गतिविधिया बंद हो गई हो चीन से इम्पोर्ट के भरोसे, वह देश कभी अपनी संप्रभुता की रक्षा नहीं कर सकता . हम बहुत कमजोर हैं और लगातार कमजोर हो रहे हैं चीन के मुकबले. चीन से इम्पोर्ट के कारण देश में बेरोज़गारी बढ़ी है क्योंकि लाखों निर्माण गतिविधियाँ बंद हुई हैं , रेडीमेड वस्त्र, छोटे कल पुर्जे, खिलौंगे, कपडे, प्लास्टिक के उत्पाद, बाल बियरिंग आदि आदि में चीन का कब्ज़ा है हमारे बाजारों पर. आर्थिक राष्ट्रवाद जरुरी है प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री जी ! प्रस्तुत है मेरी एक कविता :
रुपया
१.
रुपया
गिर रहा है
लगातार
होकर कमजोर
वह रुपया जो
आम जनता की जेब में
नहीं है, फिर भी
रोटी आधी हो रही है
नमक कम हो रहा है
उसकी थाली से,
फिसल रहा है
उसकी जेब से
२.
रूपये से
खरीदना है
पेट्रोल, गाड़ियाँ
कपडे, घड़ियाँ
टीवी, इंटरनेट,
हवाई जहाज़ और उसकी टिकटें
ई एम आई और क़र्ज़
आत्मनिर्भरता नहीं
खरीद सकता
अपना रुपया
बहुत ही सार्थक कवितायेँ.
जवाब देंहटाएंसुंदर और सटीक !!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने...
जवाब देंहटाएंबेशक हजम न हो लेकिन वास्तविकता और सच तो यही है
जवाब देंहटाएंआम जनता की जेब में
जवाब देंहटाएंनहीं है, फिर भी
रोटी आधी हो रही है
नमक कम हो रहा है
उसकी थाली से,
सटीक अभिव्यक्ति...
रुपया कमजोर होने पर हम भी कमजोर हो रहे हैं..
जवाब देंहटाएंसटीक .... देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होती जा रही है ।
जवाब देंहटाएंकुछ दिनों में बोरा भरकर नोट देकर छोटे थैले में सामान लाना पडेगा
जवाब देंहटाएंअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
lateast post मैं कौन हूँ ?
latest post परम्परा
rupye ki kamjori dikh rahi.........
जवाब देंहटाएंहम आत्मनिर्भर कब बनेगे, बनेगे भी या नहीं. हम अपने पड़ोसियों से अच्छे संबंध क्यों बनाये नहीं रख पाते जबकि हम कुछ भी करलें पडोसी तो वही रहने वाले हैं.
जवाब देंहटाएंगंभीर प्रश्न खड़े करती रचनायें.
सच कहा है ... पर क्या सच में हम आत्मनिर्भर होना चाहते हैं ...
जवाब देंहटाएंआज भी देश में डिफेन्स प्रोडक्ट का कारखाना नहीं के बराबर है ... करोड़ों अर्बोब की विदेश् मुद्रा सिर्फ इसी बात पे खर्च करते हैं हम ...
काश यह सब प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री की समझ में भी आ पाता ।
जवाब देंहटाएंदेश की दयनीय अर्थ व्यवस्था पर चोट करती रचना ..सादर बढ़ायी के साथ
जवाब देंहटाएंPlease return the advance payment and original manuscript that you are holding for last 8 months with you
जवाब देंहटाएंIts very unprofessional
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंरोकिये जनाब
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