बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

मुआवजा

उसने नहीं लगाईं  फांसी 
वह कर्जे में नहीं डूबा  
उसके खेत सूखे रह गये 
आसमान तकते तकते 
उसके हिस्से नहीं आयेगा 
कोई मुआवजा  

वह नहीं मरा 
रेल दुर्घटना में 
वह कभी मंदिर नहीं गया 
सो नहीं मरा 
भीड़ में 
उसे नहीं मिलेगा कोई मुआवजा । 

उसका नाम 
नहीं है किसी सरकारी खाते में 
वह किसी रेखा के ऊपर या नीचे नहीं है , 
नहीं मिलेगा उसे 
दाल, चावल, चीनी, किरोसिन 
रियायत दर पर।  


परिधि से बाहर हैं 
जो लोग  
उन्हें नहीं मिलेगा 
कोई मुआवजा !

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत प्रभावी ... सामाजिक नीतियों के विघटन तत्व को बाखूबी पहचान के लिखी गई लाजवाब रचना ...

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  2. वाह भाई बहुत खूब .... शेयर करने का ऑप्शन भी दीजिये पोस्ट के साथ भाई

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  3. :)

    मिलना भी नहीं चाहिये
    सीखता क्यों नहीं
    मुआवजा लेना
    नहीं सीख सकता
    तो सीख ले मुआवजा लूटना !

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    साझा करने के लिए आभार।

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  5. जो सबका पेट भरता है वही भूखे पेट सोता है यही इस देश का दुर्भाग्य है ।

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  6. बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  7. सामान्य सा जीवन, सामान्य सी मृत्यु, मुआवज़ा रहित।

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  8. आज के समय का सच ..... बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण चीजें ....

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