मंगलवार, 21 अक्टूबर 2014

दीपावली : कुछ चित्र

१.

महानगर की
लालबत्ती पर
कटोरे में 
लक्ष्मी गणेश की मूर्ति लिए
एक करीब सात साल का लड़का 
ठोक रहा है बंद शीशा
मना रहा है दीपावली 

२.
दीपावली पर
हार्दिक शुभकामना के कार्ड 
छापते छापते
सोया नहीं है वह
पिछले कई रातों से
आँखें दीप सी चमक रही हैं
ओवर टाइम के रुपयों को देख 
आज सोयेगा मन भर 
पटाखों के शोर के बीच 
मनायेगा दीपावली 

मिठाई के डब्बे पर 
चढाते चढाते
चमकीली प्लास्टिक की पन्नी
आँखों के चमक भी 
हो गईं हैं प्लास्टिक सी 
अब नहीं देखता है वह
सामने खड़े ग्राहक की ओर
वह तो मनाता है दीपावली 
दशहरा, तीज, करवाचौथ को भी 

४.
गोबर से लीपे हुए आँगन में
माँ करती है इन्तजार
दीप जलते जलते 
बुझ जाता है
आधी रात के बाद

वर्षों से कई माएं मानती हैं
ऐसे ही दीपावली 
 

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

विज्ञापन बनाते हुए


वातानुकूलित
सम्मेलन कक्ष में
बनायी जाती है रणनीति
कैसे छला जाना है
संवेदनाओं को
व्यापक रूप से,
कहा जाता है
उसे 'ब्रीफ'


पहुंचना
होता है
हर घर की जेब तक
कहा जाता है
छूना है
दिलों को


करनी है
संबंधों की बात
दिखानी है
रिश्तों की अहमियत
वास्तव में
लक्ष्य है
इस फेस्टिव सीज़न
जमा पूंजी में सेंध


संस्कृति
और परम्पराएं
तो बस साधन हैं
साध्य है
असीम विस्तार
नए बाज़ार
नए एम ओ यू
कुछ विलय
कुछ अधिग्रहण

विज्ञापन बनाते हुए 
करने  होते  हैं  
कई कई समझौते
हर बार स्वयं से

बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

मुट्ठी


उन्ही उँगलियों से 
बनती है मुट्ठी 
जिसके भीतर कसा होता है 
एक सरोकार 

मुट्ठी के लिए 
उँगलियों का होना उतना ही जरुरी है 
जितना कि होना सरोकार का 

और उनके एक होने का भी !