सरोकार
शुक्रवार, 11 सितंबर 2015
अमूर्त
अमूर्त भी
लेता है
एक आकर
उसका कोई
सिरा नहीं होता
नहीं होता
कोई छोर
वह नहीं होता
कहीं से शुरू
न ही होता है
कहीं से ख़त्म
2 टिप्पणियां:
सुशील कुमार जोशी
शनिवार, सितंबर 12, 2015
सुंदर ।
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दिगम्बर नासवा
सोमवार, सितंबर 14, 2015
कुछ शब्दों में गहरी बात ...
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सुंदर ।
जवाब देंहटाएंकुछ शब्दों में गहरी बात ...
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