उठ रहे हैं
फुटपाथ से लोग
जिनके घर नहीं हैं
सुबह होने से पहले
उनके लिए होता है भोर
गाड़ियों का शोर
थोड़ा बढ़ गया है
बढ़ गई है
चहलकदमियां
जीवन की
जो सोई थी देर से
लेकिन जग गई है भोर
होर्डिंग पर टंगी लड़की
ओस में नहाकर भी
ताज़ी नहीं लगती
और ट्रैफिक लाइट को नहीं मानती
लम्बी काले शीशो वाली गाड़ियां
अखबार वाला साइकिल हांकता है
जल्दी जल्दी
जितनी तेज़ी से चलती है छापे की मशीन
कहाँ कभी किसी ने बनाया उसे
पहले पन्ने का आदमी
जबकि पहला आदमी है वह
जो सूंघता है हर रोज़
स्याही की गंध, खबरों की शक्ल में
एक चुप्पी छा जाती है
चिड़ियों के झुण्ड के बीच
तभी म्युनिस्पलिटी की गाड़ी
गड गड कर गुज़रती है
मरे हुए जानवर को लेकर
शहर के अस्पताल के आगे
शुरू हो जाती है लगनी लम्बी कतार
पोस्टमार्टम हाउस के आगे
नहीं रोता है कोई छाती पीट पीट कर
मुट्ठी में छुपा के रखता है सौ दो सौ रूपये
मेहतर के लिए
और इसी तरह होती है अमूमन हर सुबह।