हर दिन
जीवन में गिनी ही जाए
होता है क्या
और यह जरुरी भी तो नहीं
हर आदमी
जीवन में रखता हो महत्व
ऐसा भी तो नहीं होता
और यह भी तो जरुरी नहीं
यह भी तो हो सकता है कि
जिसे आप गिनते हो आदमी में
वह आदमी ही न हो
या वह दिन जो आप बिता चुके हैं
वह दिन न रहा हो
कितने ही दिन भूखे गुज़र जाते हैं
गुज़र जाते हैं प्यासे कितने ही दिन
कितने ही दिन भय की छाया में ख़ाक हो जाते हैं
तो कितने ही दिन मिटटी में दब का घुट जाते हैं
और आदमी भी
कल एक दिन गुज़र गया
एक भीड़ ने एक आदमी को मार दिया
एक आदमी ने एक लड़की तो तार तार कर दिया
एक लड़की ने एक तितली को पकड़ तोड़ दिए उसके पंख
एक तितली फूल से चुरा ली थोड़ी खुशबू
यह थोड़ी खुशबू ही ज़िंदा रखे हुए है इस धरती को
और गिनती नहीं होती खुशबूओं की।
विचारणीय रचना.
जवाब देंहटाएंजरूरी कुछ भी नहीं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।
दिन तो दिन होते हैं?
जवाब देंहटाएंयह थोड़ी खुशबू ही ज़िंदा रखे हुए है इस धरती को
जवाब देंहटाएंऔर गिनती नहीं होती खुशबूओं की।
...बिलकुल सच...दिल को छूती बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
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बहुत सुंदर अभिब्यक्ति । मेरी ब्लॉग पैर आप का स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द रचना........... बधाई
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