भोपाल
शहर के बनने और बसने के बीच
उजड़ता है बहुत कुछ
कुछ मंदिर
कुछ मस्जिद
कुछ महल और
कुछ मजारे
बची रहती हैं
है बार उजड़ने से पहले
न मालूम सदियों पहले
जिसे राजा भोज ने
बसाया था
कौन रहा होगा
इस नगर भोपाल की
भीमवेटिका की गुफाओं में
और जब नवावो ने
बनाये होंगे हवेलियाँ
कितने ही हाथों के ज़ख्म
दफन होंगी इनमे
शहर तमाम दुखों के बाद भी
रहता है ज़िंडा
जैसे ज़िंदा है आज भोपाल
उस गैस रिसाव हादसे के बाद
कौन देख रहा है आज
रिसते हुए औरतों को
खांसते हुए आदमियों को
जली हुई चमड़ी लेकर पैदा हुए बच्चों को
कौन पढ़ रहा है
न्यायालयों की याचिकाओं में दर्ज़
मुर्दा नामों को
खड़े हैं फन उठाये
आज भी अवशेष
रिस रिस धरती की कोख में
भर रहे हैं विष
तिल तिल रोज़
न्यायलय की बंद मिसाइलों के खुलने की
प्रतीक्षा में
और मर रहे हैं मरे हुए लोग
हादसे की टीस को कम नहीं
नहीं होने देते वर्षी पर छपने वाली रिपोर्टें
भोपाल आज भी ज़िंदा है
ज़िंदा हैं वे हज़ारों शव
रिसते हुए ।
( आज भोपाल गैस हादसे को 27 साल हो गए हैं। बीस हजार से अधिक मौतें हुई थी। आज भी हज़ारों टन दूषित मालवा पड़ा है हादसे स्थल पर और लोगों को बीमार कर रहा है। इसको हटाने का मामला भी कोर्ट में धक्के खा रहा है। शहर फिर भी ज़िंदा है। श्रद्धांजलि स्वरुप मेरी एक कविता। )
सटीक।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-12-2016) को "ये भी मुमकिन है वक़्त करवट बदले" (चर्चा अंक-2546) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मर्म पर आघात किया है ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट। ... Thanks for sharing this!! :) :)
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