मंगलवार, 14 फ़रवरी 2017

प्रेम

पृथ्वी 
जैसे घूमती है 
धुरी पर अपने 
तुम घूम रही हो 
निरंतर 
चाँद जैसे 
निहारता है पृथ्वी को 
मैं, तुम्हे

मेरे लिए प्रेम
एक दिन का उत्सव नहीं !

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