अब अश्लीलता का रंग
ब्लू नहीं होता
अब यह सिमटा नहीं
पीली पन्नी में
न ही सिनेमा घरों में होता है
इनका नियत समय , देर रात या सुबह सवेरे
जहाँ जाने से भय और शर्म खाते हों लोग।
अब इसकी घुसपैठ है
दिल में, दिमाग में
पूरी रंगीनियत के साथ
यह समय है
सामूहिक अश्लीलता का !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 10 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं