लिखते हुए
साल की आखिरी कविता
सोचता हूं साल की पहली कविता के बारे में
जिसमे प्रार्थनाएं थीं बच्चो के लिए
याद आती है मुझे अपनी वह कविता
जिसमें बोझ उठाता हुआ मजदूर है
जिसकी रीढ़ की हड्डी इतनी टेढी हो गई है कि
विश्वास नहीं होता है डाक्टरों को वह कैसे है खड़ा
उन्हें याद करने लगता हूं मैं अनायास ही
जो ईंट के बोझ से दब गए
नदी में बह गए
फैक्ट्रियों के धुंए में जिनके फेफड़े फट गए
और मैं लिखता रहा कविताएं
मेरे सामने घूमने लगते हैं
त्रिशूल, तलवार और खंजर
जिन्होंने की हैं हत्याएं निरीहों की
और मेरे शब्द डर कर चुप रहे
बांधे हाथ।
अब यह साल गुजर जाएगा
लेकिन स्मृतियों से कैसे जाएगा
वह दिहाड़ी मजदूर जो
मशहूर बिजली कंपनी के टावर पर
चिपक गया था गरम राख से
और किसी ने मिटा दिया उसका नाम
हाजिरी रजिस्टर से।
जब हम उन्मादी की तरह चिल्लाते रहे
खेल के मैदानों में
बिना आक्सीजन के घुटते रहे बच्चे
और उनका शोर ख़ामोश हो गया
शतक और दोहरे शतकों के अट्टहास में ।
फिर लगता है मुझे
शत्रु कितना बलवान है
और आज जो स्वयं को कहते हैं
मेरा मित्र
वही कल शत्रु की श्रेणी में चले जाएंगे
हासिल कर मेरी संवेदनाएं
फिर एक कविता ही तो है
जिसे मैं उछाल सकता हूं उनकी ओर
पत्थर की तरह
क्या इसी लिए लिख रहा हूं
साल की अंतिम कविता
दर्ज करते हुए समय के खाते में
अपना प्रतिरोध।
साल की आखिरी कविता
सोचता हूं साल की पहली कविता के बारे में
जिसमे प्रार्थनाएं थीं बच्चो के लिए
याद आती है मुझे अपनी वह कविता
जिसमें बोझ उठाता हुआ मजदूर है
जिसकी रीढ़ की हड्डी इतनी टेढी हो गई है कि
विश्वास नहीं होता है डाक्टरों को वह कैसे है खड़ा
उन्हें याद करने लगता हूं मैं अनायास ही
जो ईंट के बोझ से दब गए
नदी में बह गए
फैक्ट्रियों के धुंए में जिनके फेफड़े फट गए
और मैं लिखता रहा कविताएं
मेरे सामने घूमने लगते हैं
त्रिशूल, तलवार और खंजर
जिन्होंने की हैं हत्याएं निरीहों की
और मेरे शब्द डर कर चुप रहे
बांधे हाथ।
अब यह साल गुजर जाएगा
लेकिन स्मृतियों से कैसे जाएगा
वह दिहाड़ी मजदूर जो
मशहूर बिजली कंपनी के टावर पर
चिपक गया था गरम राख से
और किसी ने मिटा दिया उसका नाम
हाजिरी रजिस्टर से।
जब हम उन्मादी की तरह चिल्लाते रहे
खेल के मैदानों में
बिना आक्सीजन के घुटते रहे बच्चे
और उनका शोर ख़ामोश हो गया
शतक और दोहरे शतकों के अट्टहास में ।
फिर लगता है मुझे
शत्रु कितना बलवान है
और आज जो स्वयं को कहते हैं
मेरा मित्र
वही कल शत्रु की श्रेणी में चले जाएंगे
हासिल कर मेरी संवेदनाएं
फिर एक कविता ही तो है
जिसे मैं उछाल सकता हूं उनकी ओर
पत्थर की तरह
क्या इसी लिए लिख रहा हूं
साल की अंतिम कविता
दर्ज करते हुए समय के खाते में
अपना प्रतिरोध।
जरूरी है दर्ज करना । नये साल में कुछ नया होने की उम्मीदों के साथ।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, आज करे सो कल कर, कल करे सो परसों “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंएक कवी प्रतिरोध जताने के आलावा कर भी क्या सकता है ...
जवाब देंहटाएंगहरी संवेदनशील रचना ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
सालभर का दु:खड़ा जो आगे साल फिर सरक जाता है और हम देखते रह जाते हैं
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील प्रस्तुति
बहुत ख़ूब
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