सोमवार, 26 मार्च 2018

पतझड़

यह मौसम है
पतझड़ का

पत्ते पीले पड रहे हैं
और कमजोर भी
वे गिर रहे हैं एक एक कर
जैसे घटता है पल पल जीवन

बुजुर्गों की आँखों का सन्नाटा
और गहरा गया है
पतझड़ का पीलापन उनके चेहरे के पीलेपन को
बढ़ा रहा है और भी अधिक

एक दिन गिर जायेंगे सब स्तम्भ
जो गिरेंगे नहीं उनके अवशेष रहेंगे खंडहर के रूप में

लेकिन वृक्ष कहाँ डरता है पतझड़ से
जहाँ से गिरता है पत्ता
वही से पनपता है नया कोंपल

पतझड़ को अच्छा लगता है हारना ! 

8 टिप्‍पणियां:

  1. इंसान की फ़ितरत भी पेड़ों जैसी होती तो आधा जीवन जीता वो ... न की मौत की आशा में जीता ...
    गहरी रचना है ...

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (28-03-2018) को ) "घटता है पल पल जीवन" (चर्चा अंक-2923) पर होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय 'विश्वमोहन' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।


    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  4. लेकिन वृक्ष कहाँ डरता है पतझड़ से
    जहाँ से गिरता है पत्ता
    वही से पनपता है नया कोंपल...वाह अरुण जी ...क्‍या लिखा है बहुत ही गजब...

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