बुधवार, 18 अप्रैल 2018

तुम प्रकृति हो

प्रकृति 
सबको देती है इतनी शक्ति
कि वह अपनी स्थिति का सामना कर सके
रेगिस्तान में देती है 
ताप सहने की शक्ति 
समंदर में देती है 
लहरों से जूझने की कला 
पहाड़ों में देती है 
पत्थर से लड़ने का माद्दा
जितना ताप सहते हैं हम 
जितना तैरते हैं हम 
जितना लड़ते हैं पत्थरों से 
उतनी ही पुख्ता होती है हमारी क्षमता !
कितनी ही विषमताओं से गुज़रते हुए 
आई हैं तुम में है कुछ अद्भुद शक्तियां 
उन्हें भूलो नहीं , जैसे नहीं भूलता है मानव चलना, बोलना
तुम प्रकृति हो !

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जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ज्योति !

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

नेपथ्य से

यह जो रंगमंच पर हो रहा है
लिखी गयी है इसकी स्क्रिप्ट कहीं और
किसी और उद्देश्य से

ये पात्र जो संवाद कर रहे हैं
सब झूठे हैं
सब बनावटी हैं
सब मुखौटे हैं

और जो हैं मंच के सबसे आगे
आरक्षित स्थानों पर
उन्हें ठीक ठीक ज्ञात है
वे निजी तौर पर जानते हैं
किसने लिखे हैं पात्रों के संवाद
किसने चुने हैं पात्रो को
और क्या अंत है इस मंच का

नेपथ्य तय करता है
मंच का वर्तमान और भविष्य !