भीड़ जो कल
प्रतिरोध का विवेकपूर्ण यन्त्र था
आज एक हथियार है
विध्वंसक
जो हत्या कर सकता है
विचारों का
भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता
इसकी कोई नैतिकता भी नहीं
न ही कोई संविधान है इनका
भीड़ का कोई रंग नहीं होता
ये अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं
गमछा सुविधा के रंग का
कभी भगवा, कभी हरा ,
कभी लाल तो कभी तिरंगा
यह एक षड़यंत्र है सुनियोजित
अफवाहों की ईंधन इसे बना देती है
और भी हिंसक
हम सब होते जा रहे हैं
भीड़ के हिस्से
प्रतिरोध का विवेकपूर्ण यन्त्र था
आज एक हथियार है
विध्वंसक
जो हत्या कर सकता है
विचारों का
भीड़ का कोई चरित्र नहीं होता
इसकी कोई नैतिकता भी नहीं
न ही कोई संविधान है इनका
भीड़ का कोई रंग नहीं होता
ये अपने ऊपर ओढ़ लेते हैं
गमछा सुविधा के रंग का
कभी भगवा, कभी हरा ,
कभी लाल तो कभी तिरंगा
यह एक षड़यंत्र है सुनियोजित
अफवाहों की ईंधन इसे बना देती है
और भी हिंसक
हम सब होते जा रहे हैं
भीड़ के हिस्से
बढ़िया। उच्च न्यायालय जाग रहा है।
जवाब देंहटाएंगरमी बढ़ रही है ... भीड़ भी बढ़ रही है ...
जवाब देंहटाएंमुखिया कमज़ोर हो तो नियंत्रण नहि रहता ... तंत्र है भीड़ भी ...
लाजवाब रचना अरुण की ...
सटिक रचना
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