बुधवार, 29 मई 2019

मिट्टी

मिट्टी
खुद को मिटा कर भी 
नहीं मिटती 
वह धर  लेती है 
गढ़ लेती है 
नया आकार , नया रूप 

मिट्टी 
आग में तप कर 
पत्थर हो जाती है 
फिर भी ठंढी रखती है 
अपनी तासीर 
स्वाद रखती है 
अपनी जिह्वा पर 

मिट्टी 
जितना सोखती है 
धूप अपने भीतर 
उतनी ही सोंधी होती है 
उसकी महक 

ध्वस्त हो जायेंगे ये भवन ,
गिर पड़ेंगी  ये अट्टालिकाएं 
मिट जाएँगी सीमायें और संस्कृतियां 
बस बची रहेगी मिट्टी
सदा सदा के लिए।  

शुक्रवार, 24 मई 2019

जनता की आकांक्षा को समझने में असफल रहे राजनीतिक दल

जनता की आकांक्षा को समझने में असफल रहे राजनीतिक दल
- अरुण चन्द्र रॉय 

पंडित नेहरू के बाद नरेन्द्र मोदी दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने लगातार दो बार अपने दल को लोकसभा चुनाव में जिताया है।  जब देश के लगभग सभी राजनीतिक दल एकजुट होकर भाजपा का विरोध कर रही हो ऐसे समय में चुनाव के जो नतीजे आयें हैं वह चौकाने वाला आया है।  लेकिन यह चौकाने से अधिक राजनीतिक दलों को सीख देने वाला नतीजा है क्योंकि इस तरह के नतीजे केवल तभी आते हैं जब जातिगत समीकरणों, धार्मिक ध्रुवीकरण के चक्रव्यूह को तोड़कर वोटर वोट करे।  
अभी तक जिस तरह के चुनाव देखते आये थे, राजनीतिक दलों ने वोटरों को जाति और धर्म के आधार पर तौलते थे, वे अपने उम्मीदवार का चुनाव जातिगत समीकरणों और धार्मिक समीकरणों के आधार पर किया करते थे और इस बार भी ऐसा ही हुआ था।  विभिन्न राज्यों में जाति एवं धर्म के आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया और गठबंधन का आधार भी यही रहा. किन्तु चुनाव के परिणामों ने यह दिखा दिया कि इतने बड़े लोकतंत्र में जन संवाद करके बिना जाति और धर्म को आधार बना कर बदलाव कर सकती है।  
लोकसभा चुनाव के नतीजो से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि जनता ने अवसरवादी और परिवारवाद के विरुद्ध वोट किया है।  भाजपा को जहाँ संघ से कैडर सहयोग मिल रहा है वहीँ पार्टी ने जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं से नियमित संवाद बनाए रखा है।  इस चुनाव में पार्टी ने अपने लगभग आधे सांसदों को फिर से चुनाव लड़ने का मौका नहीं दिया जिन्होंने  जनता से संवाद नहीं रखा।  भाजपा के अतिरिक्त जो विपक्षी पार्टियां मैदान में थी वे अदिकांशतः किसी निजी कंपनियों की तरह चलाई जा रही हैं और वर्षों से परिवार का नेतृत्व है जिसमे आम कार्यकर्ताओं के लिए कोई स्थान नहीं।  चुनावी नतीजों ने बता दिया है कि भारतीय राजनीति में परिवारवाद, वंशवाद और अवसरवाद के लिए कोई स्थान नहीं।  
मुझे लग रहा है  कि राजनीतिक दलों ने जनता के मुद्दों और जनता के आकांक्षाओं को समझने में भूल कर दी।  सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ जो जनता को सीधे सीधे प्रभावित करती हैं, उन योजनाओं की जब विपक्षी दलों द्वारा आलोचना की गई जिसे जनता ने अस्वीकार कर दिया।  स्वच्छता अभियान, जन धन योजनायें, डाइरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर, मुद्रा योजना, आर्थिक आधार पर आरक्षण, बुनकरों के लिए योजनायें, प्रधानमन्त्री पेंशन योजना, प्रधानमन्त्री आवास सब्सिडी योजना, आयुष्मान योजना, उज्जवला योजना, घर घर बिजली योजना  आदि  कुछ ऐसी योजनायें थी जिससे बड़ी संख्या में जनता को प्रत्यक्ष लाभ मिला और उनके जीवन स्तर में सुधार हुआ।  यही सुधार वोट में बदला ऐसा प्रतीत होता है।  जबकि विपक्ष ने अलग अलग मंचो पर इन योजनाओं पर तंज़ ही कसा।  इस तंज का उत्तर जनता ने वोट के माध्यम से प्रकट किया है।  जिस देश में स्वतंत्रता के सात दशकों के बाद भी रोज़ी-रोटी, शौचालय, शिक्षा आदि मुद्दे ज्वलंत हों, वहां परिवारवाद और अवसरवाद से ऊपर उठकर नेतृत्व करना होगा और जनता भी यही चाहती है।  

समग्र नेतृत्व और नेतृत्व का एक चेहरा चमत्कार पैदा करता है और भारतीय जनमानस चमत्कार में विश्वास करती है। जनता को  मोदी के नेतृत्व में  चमत्कार करने और समय बदलने का माद्दा दिखा और उसने इसे जाहिर कर दिया।  दूसरी ओर विपक्ष के पास न विचारधारा की एकजुटता हो सकी, न मुद्दों पर राय बनी और न कोई स्पष्ट नीति।  इसके फलस्वरूप कोई एक चेहरा उभर नहीं पाया जिसमे जनता अपना विश्वास दिखा सकी ।  

इन नतीजों ने सत्ताधारी दल को सत्ता में लौटाने के साथ बड़ी चुनौती भी दी है और यह चुनौती है जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने की जिसमे युवाओं के पास शिक्षा और रोज़गार के पर्याप्त अवसर हों, बेहतर स्वास्थ्य देखरेख हो और बिना जातीय और धार्मिक भेदभाव के अवसर प्राप्त हों।  यही नई भारत की संकल्पना है , यही नई सरकार का लक्ष्य भी होना चाहिए।  

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