एक निर्वासित तिब्बती कवि तेन्ज़िन च़ंडू की कविता "एक्जाइल हाउस" का अनुवाद
-------------------------------------------------
-------------------------------------------------
निर्वासन
- तेन्ज़िन च़ंडू
हमारी छतें चूती थीं
और दीवारें कभी भी भहर कर गिर सकती थीं
फिर भी हमें घर जाने की जल्दी होती थी
और दीवारें कभी भी भहर कर गिर सकती थीं
फिर भी हमें घर जाने की जल्दी होती थी
हम अपने घर के आगे
उगाते थे पपीते
आँगन में मिर्ची
और पीछे बगीचे में नींबू
उगाते थे पपीते
आँगन में मिर्ची
और पीछे बगीचे में नींबू
हमारे मालघर (मवेशियों को रखने वाला घर) की छत्ती पर
लटकती थी लौकियाँ और कद्दू
इन्ही के बीच से कूद कर निकलते थे बछड़े
लटकती थी लौकियाँ और कद्दू
इन्ही के बीच से कूद कर निकलते थे बछड़े
छत पर लटकती थी फलियां
और अंगूर की लताएं
खिड़कियों से घुस आती थी मनी -प्लांट की लताएं
घर के भीतर
मानो घर को उग आईं हो जड़ें
और अंगूर की लताएं
खिड़कियों से घुस आती थी मनी -प्लांट की लताएं
घर के भीतर
मानो घर को उग आईं हो जड़ें
आज आंगन में बस गए हैं जंगल
अब अपने बच्चों को कैसे बताएं
कहाँ से आये हैं हम ?
कहाँ हैं हमारी जड़ें ?
अब अपने बच्चों को कैसे बताएं
कहाँ से आये हैं हम ?
कहाँ हैं हमारी जड़ें ?
=====
अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय
सुन्दर भाव।
जवाब देंहटाएंजड़ों की खोज में भटकता है इंसान ... कई बार जड़ें दूर निकल जाती हैं कई बार उग आती हैं नयी जगह पर तलाश फिर भी रहती है मूल की ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना ...