जी जी कहने में
लगे हैं संतरी
जी जी कहने में
लगें हैं मंत्री
हम ही जो कहने लगे जी जी
आपको क्यों हुई नाराजगी !
जी जी कहने में
लगे हैं अखबार
जी जी कहने में
लगे हैं पत्रकार
जी जी की रट में समाचार
हो गया व्यापार
हमारा जी जी
क्यों हो गया व्यभिचार !
जी जी कहने में
लगे हैं उद्योगपति
जी जी कहकर
जुटा रहे अकूत संपत्ति
जी जी जो न करे
उसकी है अधोगति
फिर हमारी जी जी से
आपको क्यों लगा मारी गई मेरी मति
जी जी !
जी-जी सर!
जवाब देंहटाएंकितने साल बाद आप ब्लॉग पर आये मनोज जी .
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-09-2019) को "मोदी स्वयं सुबूत" (चर्चा अंक- 3462) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नहीं जी नहीं भी हैं कुछ पागल :)
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