ऐसा कौन है
जिसके घुटने में नहीं है दर्द
जिसे नहीं हो रही कठिनाई
सीढ़ियाँ चढ़ने या उतरने में
फिर भी क्या कभी सुना कि
किसी ने पूछा हो
आपके घुटने का हाल
या बताया हो
अपने ही घुटने का हाल ।
दरअसल जो जरूरी है
वह हो नहीं रहा दुनियाँ में
और गैर जरूरी संवादों से भरी दुनिया
होती जा रही है संवाद और संवेदना हीन ।
घंटों मोबाइल या लैपटॉप या कंप्यूटर की सकीं से
बुझी आँखों के पीछे जो दर्द होता है
घुटनों का , रीढ़ की हड्डी का या ढीली पड़ती पकड़ का
उसका जिक्र कहाँ करना चाहता है कोई
और करे भी कैसे जब कोई सुनना ही नहीं चाहता ।
थक रहे कदमों, बुझ रही आँखों
और आँगन के सूनेपन की अभिव्यक्ति के लिए
नहीं बन सकता पंद्रह बीस सेकेंड का कोई रील ।