बने होते हैं
इस्पात के ।
वे टूटते नहीं
हवा, पानी या
घाम से
बल्कि बोझ के साथ
होते जाते हैं
और अधिक पक्के ।
पिता के कंधे
बोझ से झुकते नहीं
बल्कि और तन कर
हो जाते हैं खरे।
बूढ़े होते पिता के कंधे
आश्श्वस्ति भरे हाथों को
अपने कंधे पर पाकर
चौड़े हो जाते हैं
विशाल हो जाते हैं
आसमान हो जाते हैं।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी मेरी कविता को शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति आदरणीय।
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर सृजन
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