(1)
वह यूं धीरे धीरे बदल रही है
वह यूं धीरे धीरे बदल रही है
जिंदगी रेत सी फिसल रही है
(2)
बदला है मौसम कुछ इस तरह
रूह बर्फ सी पिघल रही है
(3)
हर बात पर हँसती भी वह कभी
अब न किसी बात से बहल रही है
(4)
बसंत जायेगा तो फिर आएगा
कोयल है कह कर मचल रही है
(5)
जो दौड़ेगा गिरेगा भी दुनिया में
इसी हौसले से दुनिया टहल रही है
(6)
हार जाएगी, नहीं छोड़ेगी हौसला
यह जान बच्चों सी मचल रही है
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर
हटाएंशानदार गज़ल सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मेरी गजल को शामिल करने के लिए आभार श्वेता जी ।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी ।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आलोक जी
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