गुरुवार, 30 मई 2024

गजल


 (1)
वह यूं धीरे धीरे बदल रही है
 जिंदगी रेत सी फिसल रही है 

 (2)
बदला है मौसम कुछ इस तरह
रूह  बर्फ सी पिघल रही है 

(3)
हर बात पर हँसती भी वह कभी  
अब न किसी बात से बहल रही है 

(4)
बसंत जायेगा तो फिर आएगा 
कोयल है कह कर मचल रही है  

 (5)
जो दौड़ेगा गिरेगा भी दुनिया में 
इसी हौसले से दुनिया टहल रही है 

 (6)
हार जाएगी, नहीं छोड़ेगी हौसला 
यह जान बच्चों सी मचल रही है   

8 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार गज़ल सर।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. मेरी गजल को शामिल करने के लिए आभार श्वेता जी ।

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