शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

आदमी के हाथ

 जहां नहीं पहुंचे हैं 

आदमी के हाथ

वहां का आसमान

अब भी है साफ

वहां के जंगल

अब भी हैं घने

वहां की चिड़िया

अब भी है महफूज़! 



7 टिप्‍पणियां:

  1. कम शब्दों में गहन संदेश सर। लाजवाब।
    सादर
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. आदमी का लोभ और अज्ञान उसे प्रकृति को माँ मानने से रोकता है

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  3. बिल्कुल सही कहा है आपने। इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ तहस नहस कर डाला है

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  4. हम जहाँ भी गए, वहाँ कुछ ना कुछ छीना, बदला, या खत्म किया। लेकिन सोचो, वो जगहें जहाँ इंसान अभी नहीं पहुँचा—वहाँ हवा आज भी खुलकर साँस लेती है, पेड़ अपने असली रूप में खड़े रहते हैं, और चिड़ियाँ बिना डर के गाती हैं। ये ख़याल अपने आप में इतना शांत है कि दिल थोड़ी देर ठहर जाता है।

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