हे ईश्वर !
लौटा कर जा रहा हूँ
तुम्हारा दिया सब कुछ
मुझ पर कुछ उधार नहीं
मैंने लौटा दिये हैं
तुम्हारी सारी संपदाएँ
धरती का टुकड़ा
या हो अट्टालिकायेँ
सब छोड़ जा रहा हूँ !
किन्तु जो अर्जित किया
मैंने ज्ञान
ज्ञान से जो पाया प्रज्ञान
जो मैंने किया प्रेम
प्रेम के वे स्पर्श
जिनसे सुबासित रही मेरी आत्मा
और जब आत्मा
नहीं मरती कभी, बस धारण करती है
नया शरीर
मैं भी अपनी चेतना के साथ
धारण कर रहा हूँ नया शरीर
लौटा कर तुम्हारा दिया सब कुछ !
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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