कम शब्दों में गहन संदेश सर। लाजवाब। सादर ------ जी नमस्ते, आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है पांच लिंकों का आनंद पर... आप भी सादर आमंत्रित हैं। सादर धन्यवाद।
हम जहाँ भी गए, वहाँ कुछ ना कुछ छीना, बदला, या खत्म किया। लेकिन सोचो, वो जगहें जहाँ इंसान अभी नहीं पहुँचा—वहाँ हवा आज भी खुलकर साँस लेती है, पेड़ अपने असली रूप में खड़े रहते हैं, और चिड़ियाँ बिना डर के गाती हैं। ये ख़याल अपने आप में इतना शांत है कि दिल थोड़ी देर ठहर जाता है।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहन संदेश सर। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंसादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १५ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आदमी का लोभ और अज्ञान उसे प्रकृति को माँ मानने से रोकता है
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने। इंसान ने अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ तहस नहस कर डाला है
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंहम जहाँ भी गए, वहाँ कुछ ना कुछ छीना, बदला, या खत्म किया। लेकिन सोचो, वो जगहें जहाँ इंसान अभी नहीं पहुँचा—वहाँ हवा आज भी खुलकर साँस लेती है, पेड़ अपने असली रूप में खड़े रहते हैं, और चिड़ियाँ बिना डर के गाती हैं। ये ख़याल अपने आप में इतना शांत है कि दिल थोड़ी देर ठहर जाता है।
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