वाह्ह लाज़वाब कहा आपने... साँसें चलना ही जीवित होना नहीं होता...। सादर। मृत्यु मात्र देह और आत्मा का सांसारिक बंधनों से मुक्त होना नहीं होता ... मृत्यु सीरीज में लिख जा रही आपके विविधता दार्शनिक विचार नये दृष्टिकोण से सोचने पर विवश कर रहे। ------ जी नमस्ते, आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है पांच लिंकों का आनंद पर... आप भी सादर आमंत्रित हैं। सादर धन्यवाद।
चलते फिरते मुर्दे | बहुतेरे हैं |
जवाब देंहटाएंहा सही लिखा आपने जीवित अवस्था में ही अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए लोग एक-दूसरे को मारकर मृत कर देते हैं
जवाब देंहटाएंवाह्ह लाज़वाब कहा आपने... साँसें चलना ही जीवित होना नहीं होता...।
जवाब देंहटाएंसादर।
मृत्यु मात्र देह और आत्मा का सांसारिक बंधनों से मुक्त होना नहीं होता ...
मृत्यु सीरीज में लिख जा रही आपके विविधता दार्शनिक विचार नये दृष्टिकोण से सोचने पर विवश कर रहे।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार ५ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक रचना
हटाएंलाजवाब .... वाह
जवाब देंहटाएंपता नही क्यो यह बेनामी के रूप में आया शायद लोगिन नहीं हू. M Verma
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