गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

कल रात एक सपना देखा

प्रिये
बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद
और नींद में देखा सपना

सपना भी अजीब था
सपने में देखि नदी
नदी पर देखा बाँध
देखा बहते पानी को ठहरा
नदी की प्रकृति के बिल्कुल विपरीत

बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद

मैं तो डर गया था
रुकी नदी को देख कर
सपने में देखा कई लोग
हँसते, हंस कर लोट-पोत होते लोग
रुकी हुई नदी के तट पर जश्न मानते लोग

नदी को रुके देख खुश हो रहे थे लोग
थोक रहे थे एक दूसरे की पीठ
जीत का जश्न मन रहे थे लोग

प्रिये
रुकी नदी पर हँसते लोगों को देख कर
भयावह लग रहे थे लोग
बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद

सपने में देखा साप
काला और मोटा साप
रुकी नदी के ताल में पलता यह साप
हँसते हुए लोगों ने पाल रखा है यह साप
मैं तो डर गया था
मोटे और काले साप को देख कर

बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद

प्रिये
मैं तोड़ रहा था यह बाँध
खोल रहा था नदी का प्रवाह
मारना चाहता था काले और मोटे साप को

ताकि
नदी रुके नहीं
नदी बहे , नदी हँसे
नदी हँसे ए़क पूर्ण और उन्मुक्त हंसी

और लहरा कर लिपट जाये मुझ से

बहुत दिनों बाद
कल रात मुझे आयी नींद

प्रिये

कल रात sapne में हंसी थी नदी
मुझसे लिपट कर ए़क उन्मुक्त हंसी
और नदी बोली
कोई पूछे तो कहना
रुकना नदी की प्रकृति नही....

रुकना नदी की प्रकृति नही...


4 टिप्‍पणियां:

  1. taaki nadi ruke nahi,nadi bahe nadi hanse,ek poorn aur unmukt hansi.bahut khub unmuktata ki chhatpatahat ko vyakt karna.

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  2. कल रात sapne में हंसी थी नदी
    मुझसे लिपट कर ए़क उन्मुक्त हंसी
    और नदी बोली
    कोई पूछे तो कहना
    रुकना नदी की प्रकृति नही....


    रुकना नदी की प्रकृति नही..sach me vyapak jivan darshan hai yahan

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  3. हर परिस्थीती में नदी मार्ग निकालकर बहती है
    अच्छी रचना

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