शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

छिट फुट छोटी कवितायें


शब्द
अब नही होते
हरे
और जो हरा होता है
होता नही
जीवन

नुक्कड़ के पीपल पर
पीले अमरबेल की
हरियाली
देखने लायक हो गई है !


क्या आपने भी
महसूस किया है कि
किताबों
के जिल्द होने लगे हैं
खूबसूरत
और
भीतर के
पृष्टों का खालीपन
गूंजने लगा है !


मेरे बच्चे
नही चाहते
मम्मी पापा और अपने लिए
अलग अलग कमरा
परदे लगे बंद दरवाजे
वे चाहते हैं
खुली खिड़की
कि हवा पानी अन्दर आए और
सब मिलकर
गहरी नींद सोयें !

बुधवार, 19 अगस्त 2009

कॉपी राईटर


बेचता हूँ शब्द
इसलिए कबीर नही हूँ
भक्ति नही है शब्दों में
इसलिए तुलसी नही हूँ
बाजार की
आंखों देखि लिखता हूँ
इसलिए सूर नही हूँ
दिमाग से सोचता हूँ शब्द

इसलिए मीरा नही हूँ
एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !

सपने बुनता हूँ
सपने गढ़ता हूँ
सपने दिखाता हूँ

नही जानना चाहता
कितना सच है
कितना झूठ
कितना फरेब

तारांकित करके शर्तें लागू
लिख कर मुक्त हूँ जाता हूँ
अपनी जिम्मेदारियों से
तोड़ लेता हूँ नाता अपने शब्दों से


एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !

स्टॉक एक्सचेंज बताते है देश का मिजाज

अब
जरुरत तय नही करते
मूल्य जिंसों का
स्टॉक एक्सचेंज के हाथ में
है रिमोट जिंदगी का

मानसून
प्रभवित नही करते
अर्थ व्यवस्था
किसानों व कामगारों की थाली से
नही मापी जाती है भूख

चढते स्टॉक एक्सचेंज
लुढ़कते स्टॉक एक्सचेंज
बताते हैं देश का मिजाज

बाढ़ में डूबे खेत
सूखे खलिहान
दंगों
भूखमरी
कुपोषित माँ और उनके बच्चे
बेरोजगार युवा कन्धों को
इन् में शामिल नही किया जाता

एस एम् एस से तय होता है
बाज़ार का रूख
और अखबार कहते हैं
जींस में तेजी है
मूल्य स्थिर हैं
कोई भूखा नही सो रहा है !

टी आर पी के लिए होते हैं
सर्वेक्षण
इनके लिए
जरुरत नही

अब जरुरत तय नही करते
मूल्य जिंसों का
स्टोक एक्सचेंज के हाथ में है
रिमोट जिंदगी का

रोटी जीतती गई

मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी
दिनोदिन बड़ी होती रही यह
समय के साथ बदलती रही
कभी रंगीन तो कभी क्रिस्पी
कोकटेल डिनर से कांफ्रेंस सेमीनार तक
अलग अलग समय पर
अलग अलग तरह से
परोसी गई यह
रोटी का स्वाद भी बदलता गया
समय के बदलने के साथ
मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी


वह रोटी
जो कभी सामाजिक सरोकार थी मेरे लिए
वोह रोटी जो पूजा थी, मोक्ष का साधन थी
दान थी कल्याण थी
छिटक गई हाथों से
और ई ऍम आई , स्टेटस सिम्बल
और स्टेटस कांससनेस में बदल गई

अब
रोटी के पीछे भागता हूँ
मुहँ चिढा कर
स्वर्ण मृग बन
भगा रही है यह रोटी

मेरी
और रोटी की लडाई में
जीतती रही रोटी

बुधवार, 5 अगस्त 2009

पच बजिया ट्रेन

बाबा लौट आते हैं दिशा मैदान से
पच बजिया ट्रेन से पहले

चौके में धुआं भर आता है
पच बजिया ट्रेन से पहले

बाबूजी खेत पहुँच जाते हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले

भैंस पान्हा जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले

अखाडे में हलचल हो जाती है
पच बजिया ट्रेन से पहले

मन्दिर की घंटिया बज उठती हैं
पच बजिया ट्रेन से पहले

मस्जिद में अजान हो जाता है
पच बजिया ट्रेन से पहले

वहां ख़बर है की
अब पच बजिया ट्रेन नही चलेगी

यहाँ अलार्म क्लोक बजता है
नौ बजे...
अलार्म क्लोक से पहले यहाँ कुछ नही होता