मुझे नहीं पता कि
देश का सबसे बड़ा
लेबर बाज़ार कहाँ है
लेकिन जब देखता हूं
दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद के बीच
नो मैन्स लैंड खोड़ा के चौक पर
हर सुबह
हजारों दिहाड़ी मजदूर
कुछ कुशल
कुछ अकुशल
सब मेहनतकश
आँखों में भर कर आकाश
पीठ पर कुछ अदृश्य जिम्मेदारियां
और ढेर सारे क़र्ज़ ,
लगता है
दुनिया की सबसे तेज़ी से
बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था
खड़ी है खोखली नींव पर
जहाँ मेहनत खड़ी है
बिकने के लिए
किसी की कूची में
भरा है रंग
तो किसी के फावड़े में है
धरती को चीरने का दम
किसी की भुजाओं में है
बल उठाने को
कई कई क्विंटल
जब देखता हूँ
हर सुबह कतार में खड़े
बीडी के कश के साथ
काटते प्रतीक्षा के बेचैन पल
याद आते हैं
सरकार के नारे
गूंजने लगता है
घोषणाओं का झुनझुना
किसी नीति में
नहीं देखा इन्हें शामिल
जिनके लिए
खड़ा नहीं होता कोई
देश का सबसे बड़ा
लेबर बाज़ार कहाँ है
लेकिन जब देखता हूं
दिल्ली, नोएडा और गाज़ियाबाद के बीच
नो मैन्स लैंड खोड़ा के चौक पर
हर सुबह
हजारों दिहाड़ी मजदूर
कुछ कुशल
कुछ अकुशल
सब मेहनतकश
आँखों में भर कर आकाश
पीठ पर कुछ अदृश्य जिम्मेदारियां
और ढेर सारे क़र्ज़ ,
लगता है
दुनिया की सबसे तेज़ी से
बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था
खड़ी है खोखली नींव पर
जहाँ मेहनत खड़ी है
बिकने के लिए
किसी की कूची में
भरा है रंग
तो किसी के फावड़े में है
धरती को चीरने का दम
किसी की भुजाओं में है
बल उठाने को
कई कई क्विंटल
जब देखता हूँ
हर सुबह कतार में खड़े
बीडी के कश के साथ
काटते प्रतीक्षा के बेचैन पल
याद आते हैं
सरकार के नारे
गूंजने लगता है
घोषणाओं का झुनझुना
किसी नीति में
नहीं देखा इन्हें शामिल
जिनके लिए
खड़ा नहीं होता कोई
लेकर किसी भी रंग का झंडा
आधा दिन होते होते
आधे हाथ रह जाते हैं
खाली के खाली
नहीं जलता उनके घरों में चूल्हा उस शाम
अगले दिन
किसी भी कीमत पर बिकती है
खाली हाथें
संज्ञा शून्य होती हैं उनकी कीमत
किसी भी सूचकांक के बढ़ने या गिरने से
नहीं बढ़ता है उनका भाव
ऐसे में नो मैन्स लैंड में खड़ा
यह बाज़ार लगता है
किसी रेड लाईट एरिया की तरह ही
और सुना है कि
देश के हर शहर में
होता है लेबर चौक
और सुना है कि
देश के हर शहर में
होता है लेबर चौक