गुरुवार, 24 मई 2012

रुपया


१. 
रुपया 
गिर रहा है
लगातार
होकर कमजोर 
वह रुपया जो
आम जनता की जेब में
नहीं है, फिर भी
रोटी आधी हो रही है
नमक कम हो रहा है
उसकी थाली से,
फिसल रहा है 
उसकी जेब से 

२.
रूपये  से
खरीदना  है
पेट्रोल, गाड़ियाँ
कपडे, घड़ियाँ
टीवी, इंटरनेट,
हवाई जहाज़ और उसकी टिकटें
ई एम आई और क़र्ज़ 

आत्मनिर्भरता नहीं
खरीद सकता 
अपना रुपया 

सोमवार, 21 मई 2012

माल रोड, शिमला



गोरखा युद्ध से लौटे
अपने सेनापति के लिए
ब्रिटिश साम्राज्य का
उपहार था शिमला
जिसे कालांतर में बनाई  गई 
गुलाम भारत की  ग्रीष्मकालीन राजधानी

कहा जाता है
कालों को अनुमति नहीं थी
माल रोड तक पहुचने की
और गुलामी का प्रतीक
माल रोड शिमला में
अब भी पाए जाते हैं कुली
जो अपनी झुकी हुई पीठ पर
लादते हैं अपने से दूना वज़न तक
जीवन रेखा हैं ये
इस शहर की

पीठ पर
लाते हैं उठा
माल रोड की चमक दमक
रौनक
और किनारे पडी
किसी लकड़ी की बेंच के नीचे बैठ
सुस्ताते पाए जाते हैं
आँखों में सन्नाटा लिए


आँखे नहीं मिलाते हैं
ये कुली
क्योंकि झुकी हुई पीठ से
आदत हैजमीन को देखने की
ख़ुशी से भरे चेहरों के बीच
अकेले होते हैं
ये कुली

जब भी आता है 
जिक्र
माल रोड या  शिमला का
नहीं होता है जिक्र  पीठ पर वजन उठाये
इन कुलियों का
इस चमक के पीछे
घुप्प अँधेरा होता है
इनकी जिंदगी में

दासता के पदचिन्ह
और गहरे होते जाते हैं
जब भी उठाते हैं
अपनी पीठ पर वजन
और मापते हैं पहाड़ की ऊंचाई,
ये कुली.

शुक्रवार, 11 मई 2012

मित्रों !
एक वर्ष पहले प्रकाशन शुरू करने का विचार आया था. वह विचार कम और उत्साह अधिक था. कोई योजना नहीं थी. संसाधन नहीं था. बस था तो उत्साह. शायद पहला प्रकाशक हूं जिसने पहले विश्व पुस्तक मेले में स्थान लिया था और कोई प्रकाशित पुस्तक नहीं थी. केवल योजना थी. सपने थे. 


फिर विश्व पुस्तक मेला भी आया और साथ में करीब दस पुस्तकें. आदरणीय रश्मि प्रभा जी ने सबसे पहले भरोसा  जताया, मौका दिया और विश्व पुस्तक मेले के बड़े मंच पर आठ पुस्तकों का भव्य विमोचन हुआ था. पहली बार ब्लॉग और सहित्य जगत के लोग एक साथ एकत्रित हुए थे. ज्योतिपर्व प्रकाशन एक पुल का कार्य किया था. कुछ ऐसी घटनाएँ हुई कि मन खिन्न हुआ. कोशिश तो हौसला पस्त करने की हुई, लेकिन असफल. हाँ गति थोड़ी कम हुई, खैर जीवन का एक रंग यह भी है.



१२-१७ मई तक शिमला में पुस्तक मेला हो रहा है. नेशनल बुक ट्रस्ट का आयोजन है यह. इस बीच ब्लॉग के लोगों के साथ जो सफ़र शुरू हुआ था उसे हिंदी साहित्य जगत के स्थापित हस्ताक्षरों ने एक नया लक्ष्य दिया और बहुत गर्व है कि मेरी प्रिय कथाएं सीरिज़ के अंतर्गत संजीव, स्वयंप्रकाश और विजय जी का संग्रह प्रकाशित हो गया है. इसी बीच हिंदी की स्थापित कथा लेखिका कुसुम भट्ट जी का संग्रह "खिलता है बुरांश" भी प्रकाशित हो गया है. इसके अतिरिक्त देव प्रकाश चौधरी की ओसामा बिन लादेन के जीवन पर आधारित किताब "एक था लादेन"  भी प्रकाशित हो गया है. ज्योति  रॉय   का एक संकलन "प्रसिद्द बाल कवितायेँ" भी छप गया है. इसमें हिंदी की प्रसिद्द बाल कवितायेँ संकलित हैं.
अँधेरे के बाद रौशनी का आना तय है. यह उस एक फ़ोन काल से आभास हुआ जब सलिल वर्मा (चला बिहारी ब्लोगर बनने) ने कहा कहा कि सतीश  सक्सेना जी (मेरे गीत ब्लॉग) मुझ से प्रभावित हैं और बात करना चाहते हैं. सतीश जी से मिलकर लगा कि मुझे एक बड़ा भाई मिल गया हो. मेरे प्रयास को देख वे इतने अभिभूत थे कि मेरा आत्मविश्वास दुगुना नहीं बल्कि कई गुणा हो गया. इसी उत्साह में एक माह से भी कम समय में ही सतीश जी के कर्णप्रिय मधुर गीतों का संग्रह "मेरे गीत:" भी प्रकाशित हो गया. उनका व्यवहार, उनका स्नेह, उनकी ओर से मिली आत्मीयता के लिए कोई भी शब्द कम है.




 मेरा विश्वास है कि मेरे गीत  के प्रकाशन से हिंदी साहित्य में गीत विधा को नया जीवन मिलेगा।
गीतों का दौर फिर से लौटेगा. बच्चन और नीरज के युग की याद आएगी  इन गीतों को पढ़ कर. 

शिमला पुस्तक मेला जा रहा हूं. आप सबके स्नेह और शुभकामना के संग.
आप सबको आमंत्रण है.


बुधवार, 9 मई 2012

सूखे खेत की मेड़ पर



बैठ सूखे खेत की  मेड़  पर
घड़ियाँ टिक टिक नहीं करती
समय ठहर जाता है
आँखों के सूनेपन के भय से

यहाँ से
आसमान का रंग
दिखता है काला
लेकिन बादलों से भरा नहीं

चिड़िया लौट जाती  हैं
भूखे पेट
थके हुए डैने लेकर और
चूहों के बिल
खाली रहते हैं
आँगन के पसरे सन्नाटे की तरह
किसान के अनाजघर की तरह

सूखे खेत की  मेड़ पर
नहीं उगती  दूब
खर या पतवार भी

समय ठहर जाता है यहाँ .

शनिवार, 5 मई 2012

हथेलियां



१.
रेखाएं जो नहीं होतीं
तो भी
लोग प्यार करते
अपनी हथेलियों को

२.
हथेलियों को
साथ लाने से बनती है अंजुरी
चाहो तो रखा जा सकता है
समंदर का पूरा जल
वितान का विस्तार
उतना ही प्यार

३.
कुछ हथेलियों में होते हैं
कोयला, पत्थर, ईंट, सीमेंट,
मशीन के हत्थे के निशान
लोग संभाल कर
संजोते हैं उन्हें
किसी डिग्री या
प्रमाण पत्र की तरह

बुधवार, 2 मई 2012

सुकमा





१.
मैं
भारत के भूगोल का
नहीं था हिस्सा
कल तक
आज भी  बस
'खबर' में हूं


२.
प्रधानमंत्री के नाम से
चलती है कोई
'ग्रामीण सड़क योजना '
दशक हुए
पहुंची नहीं
हमारे यहाँ


३.
घने जंगल के बीच
कोई मानव बसता है
अक्सर
भूल जाता है
तंत्र


४.
आज
सोचा जा रहा है
सुकमा के बारे में भी
अच्छा लग रहा
(दुःख भी हो रहा है)
प्रश्न है कि
पहले क्यों नहीं !