शुक्रवार, 29 जून 2012

ज्योतिपर्व से प्रकाशित सभी पुस्तकें फ्लिप्कार्ट पर


श्री निर्मल गुप्त एक  सिद्धहस्त   व्यंग्यकार, कवि और कहानीकार हैं.  ज्योतिपर्व प्रकाशन से उनकी प्रथम पुस्तक "एक शहर किस्सों भरा" प्रकाशित हुई है.  इस पुस्तक की समीक्षा पढ़िए.  समीक्षक  हैं श्री प्रशांत मिश्र. समीक्षा दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई है।   


01 जुलाई, 2012 से इस पुस्तक के साथ - साथ ज्योतिपर्व  प्रकाशन से प्रकाशित सभी पुस्तकें फ्लिप्कार्ट पर ऑनलाइन  बिक्री  के लिए  उपलब्ध होंगी। 

शुक्रवार, 22 जून 2012

कॉपी राईटर


(पेशे से कापी राइटर का दर्द इन कविताओं में  )



बेचता हूँ शब्द
इसलिए कबीर नही हूँ
भक्ति नही है शब्दों में
इसलिए तुलसी नही हूँ

बाजार की आंखों  देखी    लिखता हूँ
इसलिए सूर नही हूँ
दिमाग से सोचता हूँ शब्द
इसलिए मीरा नही हूँ 

एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !


सपने बुनता हूँ
सपने गढ़ता हूँ
सपने दिखाता हूँ

नही जानना चाहता
कितना सच है
कितना झूठ
कितना फरेब

तारांकित करके 'शर्तें लागू'
लिख कर मुक्त हों  जाता हूँ
अपनी जिम्मेदारियों से
तोड़ लेता हूँ नाता
अपने शब्दों से 

एक कॉपी राईटर हूँ मैं
बेचता हूँ शब्द !


गुरुवार, 21 जून 2012

एक उपलब्धि होने को है





इन्टरनेट के इस  युग में हिन्दी और प्रौद्योगिकी पर एक पुस्तक ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित हो रही है. संभावना  है कि यह पुस्तक  सितम्बर २०१२ में विश्व हिंदी सम्मलेन, दक्षिण अफ्रीका में विमोचित हो.  पुस्तक और रचनाकार के नाम की प्रतीक्षा कीजिये.


आप सबकी शुभकामना चाहिए.

बुधवार, 20 जून 2012

सतीश सक्सेना के गीत संग्रह "मेरे गीत" का भव्य विमोचन . ख़ामोशी से हुआ "खामोश, खामोशी और हम" का भी विमोचन.





ज्योतिपर्व प्रकाशन द्वारा प्रकाशित सतीश  सक्सेना के गीतों का संग्रह "मेरे गीत" का विमोचन वरिष्ठ गीतकार श्री देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र' के हाथों हुआ . इस अवसर पर "आजकल" पत्रिका के पूर्व संपादक और गीतकार डॉ. योगेन्द्र दत्त और नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर और आलोचक डॉ. भारतेंदु मिश्र भी उपस्थित थे. साथ में मीडिया गुरु डॉ. अम्बरीश सक्सेना और ख्यातिप्राप्त लेखक, चिन्तक और उद्यमी लायन डॉ राजेंद्र अग्रवाल भी उपस्थित थे.  राजधानी के कंसटिट्युशन क्लब में आयोजित इस समारोह में दिल्ली और एन सी आर के साहित्यकारों और ब्लोगरों का अदभुत  समागम था. इसी समारोह में रश्मि प्रभा जी  के संपादन में १८ ब्लागरों का काव्य संकलन "खामोश ख़ामोशी और हम" का विमोचन वरिष्ठ कथाकार और कवि श्री अशोक गुप्ता द्वारा किया गया. समारोह के अध्यक्ष श्री देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र' थे. इस अवसर पर पूरे एन सी आर से आये ब्लागरों की उपस्थिति उत्साह बढ़ाने वाली थी. 

कार्यक्रम की शुरुआत श्री सतीश सक्सेना के आत्मकथ्य से हुआ.  अपने भावपूर्ण संभाषण और गीत से सतीश जी ने सभा की ऑंखें नम कर दी. अपने आत्मकथ्य में सतीश सक्स्सेना ने कहा कि मेरे गीत वास्तव में मेरे ह्रदय के उदगार हैं. ये सच हैं जो सीधे मेरे दिल से निकले हैं. मेरे आसपास जो दुनिया है, ये गीत मैंने वहीँ से उठाये हैं. इनमे मेरी माँ है, मेरी बहिन है, मेरी पत्नी है, मेरे बच्चे हैं.... मैं उन्हें जो देना चाहता हूं.. जो उनसे पाना चाहता हूं.. ये गीत वही हैं. वास्तव में ये गीत हमारे समाज के गीत हैं. हमारा परस्पर व्यवहार कैसा होना चाहिए, हमारे  अंतर्संबंध  कैसे होने चाहिए, यही मैंने अपने गीतों में कहा है. उन्होंने अपने गीतों का पाठ भी किया. सतीश सक्सेना ने कहा कि पारिवारिक स्नेह की कमी एवं असहिष्णुता हर जगह मुखर है , जिसे मेरी संवेदनशीलता अस्वीकार करती है ! आज के समय में भरे पूरे परिवार के होते हुए भी इसके सदस्य अपने आपको असुरक्षित  महसूस करते है , मेरे गीतों में सामाजिक मूल्यों में गिरावट पर ध्यान  खींचा गया है और कवि की यही वेदना इन गीतों में हर जगह मुखर होती है ! मेरी कामना है कि यह गीत, पाठक के परिवार के हर सदस्य का मन छुएं तो इनका लिखना सफल हो जाय !    

पुस्तक पर चर्चा करते हुए श्री अशोक गुप्ता ने कहा कि ब्लॉग और मूलधारा के साहित्य के बीच की दूरी कम हो रही है और ब्लॉग अभिव्यक्ति का नया मंच बन चुका है. ब्लॉग पर लिखे जाने वाले साहित्य को भी गंभीरता से लिया जा रहा है. 

हिंदी साहित्य में गीत विधा के महत्व और वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालते हुए डॉ भारतेंदु मिश्र ने कहा कि इस कठिन आर्थिक और उपभोक्तावादी समय में गीत विधा ही सहज और सरस रह गई हैं. गीतों की सरसता और सहजता ही इसे लोकप्रिय बनाती है और सतीश सक्स्सेना के गीतों में ये दोनों तत्व मौजूद हैं. डॉ. भारतेंदु मिश्र ने कहा कि जीवन और गीत एक जैसे हैं... भावो को जोडिये.. जो अधिक हो गया है उन्हें घटाइए...फिर जो सार बचे उसे गुणित कीजिये और फिर उसे बांटिये.... 

 नई कविता जब उन्मुक्त हो रही है तब जीवन और साहित्य दोनों में अनुशासन  की जरुरत बताते हुए डॉ. योगेन्द्र दत्त ने कहा कि सतीश सक्स्सेना के गीतों में विषय भी हैं और विविधता भी है. 

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि दुःख की पीड़ा वही बता सकता है जिसने उसे भुगता हो.. और सतीश जी के गीतों में वह पीड़ा अभिव्यक्त हुई  है. राजेंद्र अग्रवाल ने कहा कि भोजन के बाद सबसे जरुरी है पुस्तकें. पुस्तकें हमारे जीवन से कम हो रही है जो कि चिंता जनक है. "मेरे गीत की प्रशंसा  करते हुए उन्होंने कहा कि इस गीत में आम आदमी के भाव लिखे गए हैं. बेटों के लिए गीत, बेटियों के लिए गीत, माँ के लिए, पत्नी के लिए, बुजुर्गों के लिए... हमारे आसपास का संसार, जीवन इन गीतों में स्फुटित है. 

मीडिया गुरु डॉ अम्बरीश सक्सेना ने कहा कि पारंपरिक मीडिया और नए मीडिया में कोई टकराहट नहीं है और यही कारण है कि ब्लॉग से चल कर यह गीत पुस्तक के रूप में आई है. 

हिंदी नवगीत के वरिष्ठ गीतकार देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" ने दुःख जताते हुए कहा कि नई पीढी के साहित्यकार में अनुशासन  की कमी है और इस कारण से वे गीत के प्रति उन्मुख नहीं हो रहे क्योंकि गीत ह्रदय से लिखा जाता       है, इसमें शब्दों में  अनुशासन चाहिए और यह एक श्रम साध्य विधा है. मेरे गीत पर प्रकाश  डालते हुए कहा उन्होंने कि इस संग्रह में सतीश सक्स्सेना ने भाव प्रधान गीत लिखे हैं, जो बताते हैं कि वे सहृदय और सरल व्यक्तित्व के स्वामी  हैं. जितनी ईमानदारी से गीतों को लिखा गया है वह आज की पीढी में विरले ही मिलता है. 

ज्योतिपर्व से प्रकाशित एक और पुस्तक "खामोश, ख़ामोशी और हम" कविता संग्रह का विमोचन भी किया गया. इस संग्रह में १८ ब्लोगर कवियों की कवितायेँ संग्रहीत हैं. मीडिया गुरु डॉ.  अम्बरीश सक्सेना की उपस्थिति का मैं लोभ संवरण नहीं कर पाया और अपनी किताब "Management & Leadership Thoughts" का विमोचन भी करवा लिया। पूरा अवसरवादी ! 

ज्योतिपर्व प्रकाशन की ओर से श्रीमती ज्योति रॉय  ने साहित्यकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ से किया. कार्यक्रम का  संचालन  मैंने स्वयं किया. 

कुछ चित्र विमोचन के अवसर के 
(चित्रकार : राजू )































मंगलवार, 12 जून 2012

लोकार्पण

मित्रो ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित बहुचर्चित पुस्तक "मेरे गीत" और "खामोश ख़ामोशी और हम" का लोकार्पण इस शनिवार को हो रहा है। कार्यक्रम संलग्न है। 
आप सादर आमंत्रित हैं। 
श्री देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" हिंदी के वरिष्ठ गीतकार हैं। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें जिनमे गीत, कविता, ग़ज़ल और आलोचना की पुस्तकें शामिल हैं, प्रकाशित हुई हैं और इससे कहीं अधिक पांडुलिपियाँ तैयार हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष श्री इन्द्र पर कम से कम 20 विद्यार्थियों ने शोध किया है। 
साहित्य के खेमेबाजी से दूर देवेन्द्र शर्मा इन्द्र जी पच्चासी वर्ष की आयु में भी साहित्य साधना में जुटे हुए हैं और लगातार हिंदी, उर्दू और संस्कृत में सामान अधिकार से सृजन कर रहे हैं। 
लोकार्पण और गोष्ठियों जैसे साहित्यिक उत्सवो से दूर रहने वाले देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" जी आधुनिक कविता को गीत हन्ता की संज्ञा देते हैं क्यों आज की अधिकांश कविता में उन्हें साधना, भाव और उद्देश्य की कमी लगती है। "मैं शिखर पर हूँ" उनका प्रसिद्द गीत संग्रह है। 

हिंदी में गीत की स्थिति और सतीश सक्सेना जी की पुस्तक "मेरे गीत" पर उन्हें देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" को सुनना एक अनोखा अवसर होगा।  मैं ज्योतिपर्व प्रकाशन के लिए एक सुयोग और भाग्य का विषय मान रहा हूँ की श्री देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" जी हमारे कार्यक्रम में आने के लिए राजी हुए हैं। 

इन्द्र जी का एक प्रसिद्द गीत आप भी पढ़िए.... 

केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं

"हम जीवन के महाकाव्य हैं
केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।
         कंकड़-पत्थर की धरती है
         अपने तो पाँवों के नीचे
         हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
         स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।
         तुमको रास नहीं आ पायी
         क्यों अजातशत्रुता हमारी
         छिप-छिपकर जो करते रहते
         शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।
         कहते-कहते हमें मसीहा
         तुम लटका देते सलीब पर
         हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
         कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।
         तुम सामुहिक बहिष्कार की
         मित्र! भले योजना बनाओ
         जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
         नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।"


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