मित्रो ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित बहुचर्चित पुस्तक "मेरे गीत" और "खामोश ख़ामोशी और हम" का लोकार्पण इस शनिवार को हो रहा है। कार्यक्रम संलग्न है।
आप सादर आमंत्रित हैं।
श्री देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" हिंदी के वरिष्ठ गीतकार हैं। उनकी 50 से अधिक पुस्तकें जिनमे गीत, कविता, ग़ज़ल और आलोचना की पुस्तकें शामिल हैं, प्रकाशित हुई हैं और इससे कहीं अधिक पांडुलिपियाँ तैयार हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी के सेवानिवृत्त प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष श्री इन्द्र पर कम से कम 20 विद्यार्थियों ने शोध किया है।
साहित्य के खेमेबाजी से दूर देवेन्द्र शर्मा इन्द्र जी पच्चासी वर्ष की आयु में भी साहित्य साधना में जुटे हुए हैं और लगातार हिंदी, उर्दू और संस्कृत में सामान अधिकार से सृजन कर रहे हैं।
लोकार्पण और गोष्ठियों जैसे साहित्यिक उत्सवो से दूर रहने वाले देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" जी आधुनिक कविता को गीत हन्ता की संज्ञा देते हैं क्यों आज की अधिकांश कविता में उन्हें साधना, भाव और उद्देश्य की कमी लगती है। "मैं शिखर पर हूँ" उनका प्रसिद्द गीत संग्रह है।
हिंदी में गीत की स्थिति और सतीश सक्सेना जी की पुस्तक "मेरे गीत" पर उन्हें देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" को सुनना एक अनोखा अवसर होगा। मैं ज्योतिपर्व प्रकाशन के लिए एक सुयोग और भाग्य का विषय मान रहा हूँ की श्री देवेन्द्र शर्मा "इन्द्र" जी हमारे कार्यक्रम में आने के लिए राजी हुए हैं।
इन्द्र जी का एक प्रसिद्द गीत आप भी पढ़िए....
केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं
"हम जीवन के महाकाव्य हैं
केवल छ्न्द प्रसंग नहीं हैं।
कंकड़-पत्थर की धरती है
अपने तो पाँवों के नीचे
हम कब कहते बन्धु! बिछाओ
स्वागत में मखमली गलीचे
रेती पर जो चित्र बनाती
ऐसी रंग-तरंग नहीं है।
तुमको रास नहीं आ पायी
क्यों अजातशत्रुता हमारी
छिप-छिपकर जो करते रहते
शीतयुद्ध की तुम तैयारी
हम भाड़े के सैनिक लेकर
लड़ते कोई जंग नहीं हैं।
कहते-कहते हमें मसीहा
तुम लटका देते सलीब पर
हंसें तुम्हारी कूटनीति पर
कुढ़ें या कि अपने नसीब पर
भीतर-भीतर से जो पोले
हम वे ढोल-मृदंग नहीं है।
तुम सामुहिक बहिष्कार की
मित्र! भले योजना बनाओ
जहाँ-जहाँ पर लिखा हुआ है
नाम हमारा, उसे मिटाओ
जिसकी डोर हाथ तुम्हारे
हम वह कटी पतंग नहीं है।"
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