शिक्षक दिवस पर प्रश्न उठती कुछ क्षणिकाएं
१.
मिलती है शिक्षा
शक्ति से,
भक्ति से नहीं
आपने बहुत पहले
स्थापित कर दिया था
आज भी है जारी
२.
शिक्षा पर
सबका
एक सा अधिकार
है नहीं,
नहीं तो
एकलव्य भी होता
अर्जुन की कक्षा में
३.
शिक्षा और
शिक्षक का
प्राथमिक उद्देश्य है
सत्ता का पोषण
अन्यथा
समता होता
पहला पाठ
कमाल करते हो भाई सच में
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा ... आज भी एक सा अधिकार नहीं है शिक्षा में ।
जवाब देंहटाएं:)) sach kah rahe ho sir..
जवाब देंहटाएंपुरातन से यही होता आया है और आज भी यही हो रहा है.,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बेहतरीन क्षणिकाए,,,,
RECENT POST,तुम जो मुस्करा दो,
रमता जोगी ही करे, अब समता की बात |
जवाब देंहटाएंसत्ता-स्वामी जानते, खुराफात संताप |
खुराफात संताप, अंगूठा दिखा रहे अब |
एकलव्य को नाप, द्रोण कहकहा रहे जब |
सत्ता लेती साध, साध रविकर न पाता |
पढ़ जाए इक आध, नहीं अब इन्हें सुहाता ||
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक
जवाब देंहटाएंशिक्षा पर
जवाब देंहटाएंसबका
एक सा अधिकार
है नहीं,
नहीं तो
एकलव्य भी होता
अर्जुन की कक्षा में ...
सत्य का अनावरण ...
गहरे प्रश्न उठाते सरल शब्द..
जवाब देंहटाएंसही प्रश्न हैं ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बृहस्पतिवार (06-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
अध्यापकदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सराकारी नीतियां और वर्तमान व्यवस्था इस बात को पक्का कर रही हैं कि अर्जुन और एकलव्य एक साथ एक कक्षा में पढ़ ही न पाएं।
जवाब देंहटाएंkatu satya vyakt karti rachna...abhar
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंशक्ति अधिकार और समता
पढा़ये तो जाते हैं
जिसकी समझ में आ गये
काम में भी लाये जाते हैं
जो काम में ले आते हैं
कक्षा में नहीं जाते हैं
संसद में देखिये जरा
बहुतायत में पाये जाते हैं !
बहुत सुन्दर क्षनिकाएं |
जवाब देंहटाएं२.
जवाब देंहटाएंशिक्षा पर
सबका
एक सा अधिकार
है नहीं,
नहीं तो
एकलव्य भी होता
अर्जुन की कक्षा में .....आरक्षण से होता गर लोगों का बेड़ा पार तो लोग कहीं के कहीं होते लेकिन लोग वहीँ के वहीँ हैं.बहुत सशक्त विचार कणिकाएं हैं हमारे वक्त का आइना हैं .
बृहस्पतिवार, 6 सितम्बर 2012
नारी शक्ति :भर लो झोली सम्पूरण से
बहुत उम्दा...वाह !!!!!
जवाब देंहटाएंसटीक क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति....
:-)
जवाब देंहटाएंशिक्षा पर
सबका
एक सा अधिकार
है नहीं,
नहीं तो
एकलव्य भी होता
अर्जुन की कक्षा में
वाह ... बहुत खूब।
Bahut prabhavi ... Teenon kaduve sach ko kahti huyi ... Itihaas mein sthapit saty ... Bahut din baad likha hai kuch apne ...
जवाब देंहटाएंइन सवालों के जवाब सचमुच हर युग में मांगे जायेंगे और आने वाले युग में तो इनका जवाब देना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.. आज भुला दी गयी कवयित्री (जिनके माध्यम से मैंने क्षणिकाओं और हंसिकाओं का भेद समझा) डॉ. सरोजिनी प्रीतम ने एक बार कहा था कि
जवाब देंहटाएंएकलव्य ने
द्रोण की मूर्ति बनाकर
धनुर्विद्या सीखी
इससे साबित होता है
गुरू यदि मूर्ति ही बना रहे
तो शिष्य को
अच्छी शिक्षा दे सकता है!
(भाव आज भी याद हैं, शब्द याद नहीं, संयोजन याद नहीं)
सवाल सचमुच विचारणीय हैं किन्तु आज स्थिति बदल चुकी है । न अब 'द्रोण' हैं और न ही 'एकलव्य' । अब हैं तो केवल कोचिंग ।
जवाब देंहटाएं