एक नदी
जो गुज़रती थी
खेतों के बीच से
बाँध बनने से
सूखी रहने लगी हैं
जो गुज़रती थी
खेतों के बीच से
बाँध बनने से
सूखी रहने लगी हैं
सुना है
बहुत पानी है
बाँध के उस तरफ
वहां से
बिजली बनेगी
राजधानी को जाएगी
वहां से लौटते हुए
सांसद, विधायक, मुखिया,
सरपंच के घर होते हुए
हमारे घर भी आएगी
तब तक
या तो सूखे रहेंगे
या ढह / डूब जायेंगे
खेत, घर आँगन
बाँध के आगे के लोगों के
suvidhaon ,vyavsthao ka sach...sundar rachna..
जवाब देंहटाएंसामयिक ... बहुत ही प्रभावी अरुण जी ...
जवाब देंहटाएंकितनी समस्याएं हैं जो सिर्फ स्वार्थ के कारण उपज रही हैं ...
पानी घर ढहा जायेगा..
जवाब देंहटाएंajkal jo dikh raha hai......
जवाब देंहटाएंनए नए संसाधन न जाने कितने लोगों के दर्द के ढेर पर बनते हैं एक तरफ विकास की रौशनी किसके घर में अँधेरा करके आई इससे किसी को क्या बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबडी़ बेवकूफ नदी है
क्या बोली भी नहीं
कि मुझे मत बांधो?
प्रभावशाली सार्थक समायिक अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST -मेरे सपनो का भारत
और हमारे रहनुमा कहते हैं कि बड़े बड़े शहर में छोटी-छोटी घटनाएँ होती ही रहती है, या एक बड़े की उम्मीद में छोटे छोटे कुर्बान हो ही जाते हैं..
जवाब देंहटाएं.
काश ये कुर्बानियां देखी हों किसी ने.. और कह पाया हो,
.
यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा!
आपकी कविता में हर बार कुछ नयापन कुछ ताजगी मिलती है |आभार
जवाब देंहटाएंअरुण जी,
जवाब देंहटाएंइस रचना ने एक 'फ्लो चार्ट' सामने ला दिया.
सुविधा लेने में :
राजधानी सबसे आगे फिर
उसके पीछे-पीछे रहते हैं
शहर-महानगर
पूँजीपतियों के उद्योग-धंधे
गाँव में बसे सांसद-विधायक-पार्षद-सरपंचों के बन्दे.
यदि सुविधा की खुरचन बची तो
झोपड़ीनाथों के लिये 'लोटरी सिस्टम' से दिये जाते हैं
सरकारी तोहफे.... वह भी यूँ ही नहीं.
'चुनाव' त्यौहार में
वोट की कीमत पर.
और मुसीबत के अंदेशे में :
सबसे आगे रखे जाते हैं
सुविधाओं की खेती के इर्द-गिर्द रहने वाले बाशिंदे.
मतलब कि फटेहाल और भूखे लोग
जिनके मरने से एक मज़बूत राष्ट्र की मजबूती को कोई फरक नहीं पड़ता.
उसके पीछे रहते हैं क्रम से
निम्न-मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग के लोग...
पीछे-पीछे प्रहरियों की पौशाकों में डटे दिखते हैं हरदम ...'फौजी'
जिन्हें 'देश के रक्षक' की उपमा दी जाती है
लेकिन वे 'सुविधाभोगियों' की रक्षा में तत्पर अधिक दिखते हैं.
देश के रक्षक अकसर इस्तेमाल होते हैं
एक बड़ी दुर्घटना के बाद.
वह भी खा-खाकर मुटियायी तोंदों के बचाव में.
सर्वनाश हम ही ला रहे और दोष ईश्वर को दे रहे
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली सार्थक अभिव्यक्ति,,,,हिन्दीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसधे शब्दों में पीड़ा को समेटा है आपने...
जवाब देंहटाएंकेवल इतना भर भी यदि हो जाता कि बची खुची बासी सी बिजली की रेख जो पहुँच जाती यहाँ भी, तो उसे ही जीवन का उजाला मान लोग संतोष करने का प्रयास करते, पर इनके भाग्य में यह भी कहाँ..
विकास के नाम पर आम जनता और प्रकृति के साथ खिलवाड़ ऐसे ही कब तक चलता रहेगा?
जवाब देंहटाएंयह पीड़ा आम जन की है जो जल में डूभ कर सत्याग्रह कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ....
जवाब देंहटाएंइसे यहाँ शेयर किया है अरुण भाई
https://www.facebook.com/tiwari.bharat/posts/203300543135494
सादर
बहुत उम्दा ....
जवाब देंहटाएंइसे यहाँ शेयर किया है अरुण भाई
https://www.facebook.com/tiwari.bharat/posts/203300543135494
सादर