गुरुवार, 13 सितंबर 2012

बाँध के आगे के लोग



एक नदी
जो गुज़रती थी
खेतों के बीच से
बाँध बनने से
सूखी रहने लगी हैं

सुना है
बहुत पानी है
बाँध के उस तरफ
वहां से
बिजली बनेगी
राजधानी को जाएगी
वहां से लौटते हुए
सांसद, विधायक, मुखिया,
सरपंच के घर होते हुए
हमारे घर भी आएगी 

तब तक
या तो सूखे रहेंगे
या ढह / डूब जायेंगे
खेत, घर आँगन
बाँध के आगे के लोगों के 



17 टिप्‍पणियां:

  1. सामयिक ... बहुत ही प्रभावी अरुण जी ...
    कितनी समस्याएं हैं जो सिर्फ स्वार्थ के कारण उपज रही हैं ...

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  2. नए नए संसाधन न जाने कितने लोगों के दर्द के ढेर पर बनते हैं एक तरफ विकास की रौशनी किसके घर में अँधेरा करके आई इससे किसी को क्या बढ़िया प्रस्तुति

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  3. बहुत सुंदर !

    बडी़ बेवकूफ नदी है
    क्या बोली भी नहीं
    कि मुझे मत बांधो?

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  4. और हमारे रहनुमा कहते हैं कि बड़े बड़े शहर में छोटी-छोटी घटनाएँ होती ही रहती है, या एक बड़े की उम्मीद में छोटे छोटे कुर्बान हो ही जाते हैं..
    .
    काश ये कुर्बानियां देखी हों किसी ने.. और कह पाया हो,
    .
    यहाँ तक आते आते सूख जाती हैं कई नदियाँ,
    हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा!

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  5. आपकी कविता में हर बार कुछ नयापन कुछ ताजगी मिलती है |आभार

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  6. अरुण जी,
    इस रचना ने एक 'फ्लो चार्ट' सामने ला दिया.

    सुविधा लेने में :
    राजधानी सबसे आगे फिर
    उसके पीछे-पीछे रहते हैं
    शहर-महानगर
    पूँजीपतियों के उद्योग-धंधे
    गाँव में बसे सांसद-विधायक-पार्षद-सरपंचों के बन्दे.
    यदि सुविधा की खुरचन बची तो
    झोपड़ीनाथों के लिये 'लोटरी सिस्टम' से दिये जाते हैं
    सरकारी तोहफे.... वह भी यूँ ही नहीं.
    'चुनाव' त्यौहार में
    वोट की कीमत पर.

    और मुसीबत के अंदेशे में :
    सबसे आगे रखे जाते हैं
    सुविधाओं की खेती के इर्द-गिर्द रहने वाले बाशिंदे.
    मतलब कि फटेहाल और भूखे लोग
    जिनके मरने से एक मज़बूत राष्ट्र की मजबूती को कोई फरक नहीं पड़ता.
    उसके पीछे रहते हैं क्रम से
    निम्न-मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग के लोग...
    पीछे-पीछे प्रहरियों की पौशाकों में डटे दिखते हैं हरदम ...'फौजी'
    जिन्हें 'देश के रक्षक' की उपमा दी जाती है
    लेकिन वे 'सुविधाभोगियों' की रक्षा में तत्पर अधिक दिखते हैं.
    देश के रक्षक अकसर इस्तेमाल होते हैं
    एक बड़ी दुर्घटना के बाद.
    वह भी खा-खाकर मुटियायी तोंदों के बचाव में.

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  7. सर्वनाश हम ही ला रहे और दोष ईश्वर को दे रहे

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  8. प्रभावशाली सार्थक अभिव्यक्ति,,,,हिन्दीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  9. सधे शब्दों में पीड़ा को समेटा है आपने...

    केवल इतना भर भी यदि हो जाता कि बची खुची बासी सी बिजली की रेख जो पहुँच जाती यहाँ भी, तो उसे ही जीवन का उजाला मान लोग संतोष करने का प्रयास करते, पर इनके भाग्य में यह भी कहाँ..

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  10. विकास के नाम पर आम जनता और प्रकृति के साथ खिलवाड़ ऐसे ही कब तक चलता रहेगा?

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  11. यह पीड़ा आम जन की है जो जल में डूभ कर सत्याग्रह कर रहे हैं।

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  12. बहुत उम्दा ....
    इसे यहाँ शेयर किया है अरुण भाई
    https://www.facebook.com/tiwari.bharat/posts/203300543135494
    सादर

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  13. बहुत उम्दा ....
    इसे यहाँ शेयर किया है अरुण भाई
    https://www.facebook.com/tiwari.bharat/posts/203300543135494
    सादर

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