माँ के लिए
दिवाली आ जाता है
हफ्ता भर पहले ही
घर के कोने कोने तक
पहुच जाती है माँ
जहाँ होती है
चूहों का बसेरा
सीलन
अँधेरा
माँ दिवाली कर आती है
घर के अँधेरे कोनो में
सबसे आखिर में
माँ निकलती है
अपनी सबसे पुरानी पन्नी
जिसमे कई गत्तो के नीचे
पड़ी होती है
कुछ पुरानी कढाई,
कुछ जंग लगी सुइयां
कुछ अधूरे चित्र
जिन्हें इस बरस पूरा करने को सोचती है
यह सिलसिला
दशको पुराना है
होती हैं
इन्ही गत्तों के बीच
कुछ सपने
जिन्हें माँ छोड़ आई होती हैं
जिंदगी के किसी मोड़ पर
दिवाली पर
उन सीलन भरे सपनो को भी
धूप और दीया दिखाती है
माँ के लिए
दिवाली का मतलब
कुछ सपनो को
फिर से अँधेरे गत्तो के बीच सहेज कर
रख देना होता है
और फिर रोशन करना होता है
घर, आँगन, चूल्हा, चौका, छत।
माँ के जीवन का तिमिर
किसी दीप से नहीं गया
सदियों से
(दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं )