बारिश नहीं हुई
जब रोपनी हो रही थी
धान की
फिर आया
भीषण बाढ़
मेरे गाँव में
और बह गया
रहा-सहा धान
तब भी बारिश नहीं हुई
जब फूटना था
बाढ़ से बचे हुए धानों को
जैसे तैसे धान फूटे
और कटनी के समय
बादल बरसा खूब
मेरे गाँव में
इण्डिया गेट पर तब
नहाये खूब बच्चे
भीगे रूमानी मौसम में खूब जोड़े
अखबारों ने छापे
हरे भरे, साफ़ सुथरे वृक्षों के चित्र
जब माथे पर हाथ धरे
रो रहे थे मेरे गाँव के किसान
मौसम विभाग ने बुलाकर प्रेस कांफ्रेंस कहा
इस साल भी हुई औसत बारिश
मेरा खलिहान रहा खाली
जिसका जिक्र नहीं होगा
किसी रिपोर्ट में !
वाह .... विचारणीय बात सामने रखती रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंमौसम भी इन्सानों की तरह से क्रूर हो गया है।
जवाब देंहटाएंवाह , एकदम जीवन्त और मार्मिक ।
जवाब देंहटाएंजिस पांव न फटी बिवाई क्या जाने वो पीर पराई
जवाब देंहटाएंमेरा खलिहान रहा खाली
जवाब देंहटाएंजिसका जिक्र नहीं होगा
किसी रिपोर्ट में !
बिल्कुल सहमत हूँ आपकी इस बात से