गुरुवार, 4 दिसंबर 2014

गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं




१,
आटा 
थोडा गीला
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी

२.
मैं 
तुम 
बच्चे , 
गीले बिस्तर की गंध 
कितनी  सुगंध 

३.
न कभी 
गुलाब 
न कोई 
गीत 
फिर भी जीवन में 
कितना संगीत 

४.
सूखी रोटी
नून 
और तेरा साथ , 
आह ! कितना स्वाद 

५.
तीज 
त्यौहार पर 
तेरा उपवास 
गरीबी को छुपाने का 
अदभुत प्रयास 

8 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ शब्दों में बहुत कुछ कहती लाज़वाब क्षणिकाएं!

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  2. न कभी
    गुलाब
    न कोई
    गीत
    फिर भी जीवन में
    कितना संगीत
    वाह क्या बात है अच्छी लगी लाज़वाब क्षणिकाएं!

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  3. "Santosh" zabardast santosh...kahan milta hai, kaise milta hai, auron ko bhi sikhaaiye. Ye daur "santushti ke dushmanon" ka hi hai.

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  4. सभी क्षणिकाएं बहुत ही संवेदनशील ... गृहस्थी के इतने रंग हैं ... सभही बेजोड़ हैं ...

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  5. आपको सपरिवार नए साल की बहुत-बहुत हार्दिक मंगलकामनएं!

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  6. न कभी
    गुलाब
    न कोई
    गीत
    फिर भी जीवन में
    कितना संगीत
    ye kshnika sabse badhiya ...

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