गुरुवार, 8 जनवरी 2015
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जलीय कीट
ए. के. रामानुजम की कविता "दी स्ट्राईडर्स" का अनुवाद - जलीय कीट बाकी सब कुछ छोडिये कुछ पतले पेट वाले बुलबुले सी पारदर्शी आँख...

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आसमान में भरे हैं रंग धूसर ही सही लेकिन मिटटी का भी एक रंग है रंग हरा जब होता है खेतों का , दुनिया में होता है जीवन पानी को कहते ...
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अंग्रेजी भाषा के आधुनिक कवियों में एक निसीम एजेकिल की एक कविता "पेट्रियट" के अनुवाद करने की कोशिश की है। यह कविता एमरजेंसी के दौ...

अच्छी शुरुआत है ... नव वर्ष की मगल कामनाएं ...
उत्तर देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (09.01.2015) को "खुद से कैसी बेरुखी" (चर्चा अंक-1853)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
उत्तर देंहटाएंक्या करेंगे गाँधी जी ? बईज्जती करवाने आ रहे हैं क्या ?
उत्तर देंहटाएंसुशील भाई , मेरे प्रयास में कुछ कमी रही है। इस बार गांधी जी के लाठी में कमल का फूल लगा हुआ है। जिस तरह सरकार गांधी गांधी कर रही है, स्वछता से लेकर उनके अफ्रीका से लौटने तक को लेकर, गांधी तो गांधी रह ही नहीं गए हैं. एक और जहाँ उन्ही के लोग गोडसे की मूर्ती लगा रहे हैं, वहीँ उनके प्रधानमंत्री जी गांधी के सपनो का भारत बना रहे हैं , शायद मेरा आशय कार्टून में स्पष्ट नहीं हो सका है।
हटाएंअरुण जी आप का प्रयास बहुत सुंदर है । आज तो हर गली में गाँधी हैं । गाँधी एक दुकान में रखी बिकने की वस्तु नहीं हो गई है क्या ? गाँधी को नोट से हटा कर वोट बना दिया है । आपका आशय स्पष्ट है ।
हटाएंसार्थक ।
उत्तर देंहटाएंबहुत ही बढ़िया..
उत्तर देंहटाएंअच्छी शुरूआत है..शुभकामनाएं
उत्तर देंहटाएंबढ़िया है , शुभकामनाएं
उत्तर देंहटाएंअच्छी शुरूआत है :))
उत्तर देंहटाएंखट्टी-मीठी यादों से भरे साल के गुजरने पर दुख तो होता है पर नया साल कई उमंग और उत्साह के साथ दस्तक देगा ऐसी उम्मीद है। नवर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
कभी फुर्सत मिले तो ….शब्दों की मुस्कराहट पर आपका स्वागत है
गांधी और गोडसे को आजकल रसीदी टिकट की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है...‘‘ताकि सनद रहे और वक्त पे काम आवे।’’
उत्तर देंहटाएंमारक कार्टून !