शुक्रवार, 26 जून 2015

घिरनी लगे पैर



बांध दिए हैं 
किसी ने तुम्हारे पैर में 
घिरनी 
सदियों पहले 
तुम घूम रही हो 
खेत  से घर तक 
घर से रसोई तक 
रसोई से बिस्तर तक 

इस घिरनी में 
बंधे हैं रिश्ते के घुँघरू 
जिनके तरह तरह के नाम दिए गए हैं 
और उनकी रुनझुन से 
खुश हो तुम 
सदियों से 

नहीं नोच सकती तुम 
यह घिरनी  
क्योंकि अब तुम होती हो पैदा 
इस घिरनी के साथ 

घिरनी लगे पैर में 
जंजीर के निशाँ देखे जा सकते हैं 

6 टिप्‍पणियां:

  1. पोस्टर में तो नहीं
    दिखाये जाते हैं पैर कभी
    शायद इसी घिरनी
    और जंजीर के निशानों को
    छुपाने के लिये ।

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  2. सुन्दर रचना
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
    www.manojbijnori12.blogspot.com

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  3. नारी जीवन और अपने समाज के दायरे ... कितना कुछ इस स्थिति पे स्वतः ही लिखवा जाते हैं ... बहुत संवेदनशील भाव लिए बेहतरीन रचना ...

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  4. एक बेहद संवेदनशील प्रस्तुती

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  5. एक बेहद संवेदनशील प्रस्तुती

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