शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

सांता क्लॉस नहीं पहुंचे

सांता क्लॉस नहीं पहुंचे  
आसमान के नीचे रह रहे 
ठिठुरते बच्चो के बीच 
जिन्हे मालूम नहीं 
क्या होते हैं सपने 
क्या माँगना होता है सपने में 

सांता क्लॉस नहीं पहुंचे 
सड़को पर खिलौने बेचते बच्चो के बीच 
जिन्हे रिरिया कर ,  हाथ=पैर जोड़ कर 
खिलौने बेचना आता 
इन खिलौने से उन्हें खेलना नहीं आता 

सांता क्लॉस नहीं पहुंचे 
उस लड़की के पास जो बेच रही थी 
लाल गुलाब , सांता की लाल टोपी , मुखौटा 
मैले-कुचैले कपड़ो में 

सांता क्लॉस नहीं पहुंचे 

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

सहिष्णु देश का नागरिक



मैं कभी भी 
मारा जा सकता हूँ 

कभी भी कोई आकर 
भोंक सकता है मुझे 
त्रिशूल 
कोई खदेड़ कर मुझे 
कर सकता है 
तलवार आर पार 
कोई मुझे 
शूली पर चढ़ा सकता है 
कभी भी 
या फिर 
गाडी में बंद कर 
फूंक सकता है 
भीड़ के साथ 

मैं नागरिक हूँ 
एक सहिष्णु  देश का 

मेरे गाँव को 
साफ़ किया जा सकता है 
गोमूत्र से 
शुद्धि की जा सकती है 
गंगाजल से 
और इस विधान से शुद्ध  गाँव में 
दी जा सकती है किसी की भी बलि 
सामूहिक रूप से उत्सव के तौर पर 

एक बार मैं 
लटक  गया था खेतों के मेढ पर लगे पीपल से 
जब खड़ी फसल में लग गया था फुफूंद 
एक बार मैं 
रेल की पटरी पर सो  गया था 
जब बाढ़ बहा ले गई थी फसल 
एक बार रेत दिया गया था  मेरा गला 
सूदखोर महाजन के हाथों 
इसी सहिष्णु देश में 

मैं दब जाता हूँ पहियों के नीचे 
फुथपाथ पर सोते हुए 
जबकि वह पहिया कभी चला ही नहीं होता है 
या फिर कोई चला ही नहीं रहा होता है 
उस पहिये को 
मेरे बच्चे खदेड़ दिए जाते हैं न्यायलय से 
और न्याय की देवी मुस्कुरा रही होती हैं 
मूंदे आँखे इसी सहिष्णु देश में 


मेरी ही हड्डियां मिली हैं हर बार खुदाई में 
मंदिरों के प्रस्तर में /मंडियों की सीढ़ियों में 
राजदरबारों के प्रेक्षागृह में 
मैं ही हारा हूँ बार बार 
इस सभ्यता की यात्रा में सदियों से 


मैं नागरिक हूँ 
एक सहिष्णु देश का।  



मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

निरुद्देश्य

सन्नाटा 
जब बोलने लगे
कहाँ जरुरत रह जाती है
शब्दों की

अर्थ बदल जाता है
मायनों के 
और रोशनाई का रंग
हो जाता है लाल
ऐसे में तवारीख
इतिहास में दर्ज हो जाती हैं
सन्दर्भ के बिना। 

अखबार खोने लगते हैं
विश्वास
रिश्तों का भरोसा
दरक उठता है
और जो बचा होता है
वह होता है निरुद्देश्य