सन्नाटा
जब बोलने लगे
कहाँ जरुरत रह जाती है
शब्दों की
अर्थ बदल जाता है
मायनों के
और रोशनाई का रंग
हो जाता है लाल
ऐसे में तवारीख
इतिहास में दर्ज हो जाती हैं
सन्दर्भ के बिना।
अखबार खोने लगते हैं
विश्वास
रिश्तों का भरोसा
दरक उठता है
और जो बचा होता है
वह होता है निरुद्देश्य
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंयही तो होता है ।
जवाब देंहटाएंआपने जिस तरह सन्नाटे को आवाज़ दी है, मैं उसे महसूस कर सकता हूँ। जब खामोशी बोलती है, तो शब्द सच में बेकार लगते हैं। रिश्तों का भरोसा टूटते देखना आसान नहीं होता, और अखबारों से विश्वास फिसलता हुआ देखना और भी भारी लगता है।
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