बुधवार, 19 जुलाई 2017

हिम्मत और जिंदगी

  राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का एक महत्वपूर्ण निबंध :

हिम्मत और जिंदगी
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             ज़िन्दगी के असली मज़े उनके लिए नहीं हैं जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते है | बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का कोई स्वाद छिपा है तो वह भी उन्ही के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सूखा है, ओंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है | पानी में जो अमृत वाला तत्त्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चूका है, वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा ही नहीं है |
             सुख देनेवाली चीज़ें पहले भी थीं और अब भी हैं | फ़र्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं  और उनके मज़े बाद में लेते हैं उन्हें स्वाद अधिक मिलता है | जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है |
             जो लोग पाँव भीगने के खौफ़ से पानी से बचते रहते हैं, समुद्र में डूब जाने का खतरा उन्ही के लिए है | लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है वे मोती लेकर बहर आएँगे |
             चांदनी की ताजगी और शीतलता का आनन्द वह मनुष्य लेता है जो दिनभर धूप में थककर लौटा है, जिसके शरीर को अब तरलाई की ज़रुरत महसूस होती है औरे जिसका मन यह जानकर संतुष्ट है की दिन भर का समय उसने किसी अच्छे काम में लगाया है |
             इसके विपरीत वह आदमी भी है जो दिन भर खिड़कियाँ बंद करके पंखों के नीचे छिपा हुआ था और अब रात में जिसकी सेज बाहर चांदनी में लगाई गई है | भ्रम तो शायद उसे भी होता होगा कि वह चांदनी के मज़े ले रहा है, लेकिन सच पूछिए तो वह खुशबूदार फूलों के रस में दिन-रत सड़ रहा है |
             उपवास और संयम ये आत्महत्या के साधन नहीं है | भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है | 'त्यक्तेन भुंजीथा:', जीवन का  भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है, क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनन्द प्राप्त होता है, वह निरा भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पता |
             बड़ी चीज़ें बड़े संकटों में विकास पाती हैं, बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्ज़ा करती हैं | अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने बाप के दुश्मन को परास्त कर  दिया था जिसका एक मात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था, और वह भी उस समय, जब उसके बाप के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत नहीं थी |
             महाभारत में देश के प्राय: अधिकांस वीर कौरवों के पक्ष में थे | मगर फिर भी जीत पांडवों की हुई; क्योंकि उन्होंने लाक्षागृह की मुसीबत झेली थी, क्योंकि उन्होंने वनवास के जोखिम को पार किया था |
             श्री विंस्टन चर्चिल ने कहा है की जिंदगी की सबसे बड़ी सिफ़त हिम्मत है | आदमी के और सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं |
             ज़िन्दगी की दो सूरते हैं | एक तो यह की आदमी बड़े-से-बड़े मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाए, और अगर असफलताएँ कदम-कदम पर जोश की रोशनी के साथ अंधियाली का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाये |
             दूसरी सूरत यह है की उन ग़रीब आत्माओं का हमजोली बन जाये जो न तो बहुत अधिक सुख पाती हैं और न जिन्हें बहुत अधिक दुःख पाने का ही संयोग है, क्योंकि वे आत्माएँ ऐसी गोधुलि में बस्ती हैं जहाँ न तो जीत हंसती है और न कभी हार के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ती है | इस गोधुलि वाली दुनिया के लोग बंधे हुए घाट का पानी पीते हैं, वे ज़िन्दगी के साथ जुआ नहीं खेल सकते | और कौन कहता है की पूरी ज़िन्दगी को दाव पर लगा देने में कोई आनन्द नहीं है?
             अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा हो तो फिर असली मज़ा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है |
             साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी ज़िन्दगी होती है | ऐसी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान यह है की वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है | साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखनेवाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं | जनमत की उपेक्षा करके  जीनेवाला आदमी दुनिया की असली ताकत होते है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है | क्रांति करनेवाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं |
             साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है |
             साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता है, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है |
             झुण्ड में चलना और झुण्ड में चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है | सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है |
             अर्नाल्ड बेनेट ने एक जगह लिखा है कि जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, जिंदगी की चुनौती को कुबूल नहीं कर सका, वह सुखी नहीं हो सकता | बड़े मौक़े पर साहस नहीं दिखानेवाला आदमी बार-बार अपनी आत्मा के भीतर एक आवाज सुनता रहता है, एक ऐसी आवाज़ जिसे वही सुन सकता है और जिसे वह रोक भी नहीं सकता | यह आवाज़ उसे बराबर कहती है, "तुम साहस नहीं दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए |" संसारिक अर्थ में जिसे हम सुख कहते हैं उसका न मिलना, फिर भी, इससे कहीं श्रेष्ठ है कि मरने के समय हम अपनी आत्मा से यह धिक्कार सुनें कि तुममें हिम्मत की कमी थी, तुममें साहस का आभाव था, कि तुम ठीक वक्त पर जिंदगी से भाग खड़े हुए |
             जिंदगी को ठीक से जीना हमेशा ही जोखिम झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम का हर जगह पर एक घेरा डालता है, वह अन्तत: अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और ज़िन्दगी का कोई मज़ा उसे नहीं मिल पाता, क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में , असल में, उसने जिंदगी को ही आने में रोक रखा है |
             जिंदगी से, अंत में, हम उतना ही पाते हैं जितनी कि उसमें पूँजी लगाते हैं | यह पूँजी लगाना जिंदगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलट कर पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए हैं | ज़िन्दगी का भेद कुछ उसे ही मालूम है जो यह जानकर चलता है कि जिंदगी कभी भी खत्म न होने वाली चीज़ है |
              अरे! ओ जीवन के साधको! अगर किनारे की मरी हुई सीपियों से ही तुम्हें संतोष हो जाये तो समुद्र के अन्तराल में छिपे हुए  मौक्तित-कोष की कौन बहर लायेगा?
              दुनिया में जितने भी मज़े बिखरे गए हैं उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है | वह चीज़ भी तुम्हारी हो सकती है जिसे तुम अपनी पहुँच के परे मानकर लौट जा रहे हो |
             कामना का अंचल छोटा मत करो, जिंदगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर निचोड़ो, रस के निर्झरी तुम्हारे बहाए भी बह सकती है |
          यह अरण्य , झुरमुट जो काटे अपनी राह बना ले,
          क्रीतदास यह नहीं किसी का जो चाहे अपना ले |
          जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर! जो उससे डरते हैं |
          वह उनका जो चरण रोप निर्भय होकर लड़ते हैं |

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