सोमवार, 17 जुलाई 2017

पानी




कहीं भी हो पानी 
जगह बना लेता है 
अपने लिए 

मेघ से धरती पर गिरते हुए भी 
चूमना नहीं भूलता  
पहाड़ों की सख्ती को 
पेड़ को , पत्तियों को 
फूलों की नर्म पंखुड़ियों को 
नदी के चंचल लहरों को 

पानी जहाँ होता है 
वहीँ की हो जाता है 
जिस रंग में होता  है 
उसी रंग में रंग जाता है 
मेघ में काला , आसमान में नीला, 
मिटटी में मटमैला 
समंदर में फिर नीला 

पानी जब धान के कोख में गिरता है तो 
मोती बना देता है 
किसान के प्रार्थनाओ में 
पानी सबसे कोमल होता है।  

दुनिया जो पानी हो जाती 
खून की प्यास कब की मिट जाती।  

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