कहीं भी हो पानी
जगह बना लेता है
अपने लिए
मेघ से धरती पर गिरते हुए भी
चूमना नहीं भूलता
पहाड़ों की सख्ती को
पेड़ को , पत्तियों को
फूलों की नर्म पंखुड़ियों को
नदी के चंचल लहरों को
पानी जहाँ होता है
वहीँ की हो जाता है
जिस रंग में होता है
उसी रंग में रंग जाता है
मेघ में काला , आसमान में नीला,
मिटटी में मटमैला
समंदर में फिर नीला
पानी जब धान के कोख में गिरता है तो
मोती बना देता है
किसान के प्रार्थनाओ में
पानी सबसे कोमल होता है।
दुनिया जो पानी हो जाती
खून की प्यास कब की मिट जाती।
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जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंThis one is awesome Arun ji....Best of all your poems I have read till now...
जवाब देंहटाएंबहहुत खूब ... पानी ये पानी तेरा रंग कैसा ...
जवाब देंहटाएंलजवाब हमेशा की तरह ...