1.
पोखर
केवल पोखर ही नहीं सूखता
सूखते हैं सबसे पहले
घास फूस, काई
मरने लगती हैं मछलियां,
मेंढक और केकड़े
दूर भागते हैं पशु-पखेरू
किनारे के वृक्ष मरते हैं
धीरे धीरे
आदमी है कि समझता है,
सूख रहा है केवल पोखर
2
जब सूखता है
पोखर
आते हैं तरह तरह के बगुले
वे मछलियों को लुभाते हैं
बड़े पोखर का स्वप्न दिखाते हैं
करते हैं उन्हें विस्थापित
विस्थापन के क्रम में
दम तोड़ती हैं मछलियां
किन्तु इस कहानी में नहीं है कोई केकड़ा
जो तोड़े बगुले की गर्दन
3
जब पोखर सूखता है
किनारे के खेत सूखते हैं
बैलों को पानी नहीं मिलता तो वे बेचे जाते हैं
फिर मशीने आती हैं
नलकूप खुदते हैं
धरती का पानी जाता है चूसा
बेधड़क
पोखर के सूखने से
सूखती है स्वायत्तता और सम्प्रभुता
बढ़ती है निर्भरता
और सब समझते हैं कि
केवल सूख रहा है पोखर
कोई प्रश्न नहीं उठाता कि
आखिर पोखर सूख ही क्यों रहा?
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पोखर सूखने से क्या क्या होता है गंभीरता से वर्णित किया है
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
पोखर सूखता हुआ सब नहीं देख पाते हैं सबकी आँखे एक जैसी कहाँ होती हैं ?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
सच! सूखी भावनाओं ने सुखा दिया है सबकुछ ।
जवाब देंहटाएंपोखर का सूखना बहुत कुछ अनकहा भी कह गया
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