जब उसकी उम्र
स्कूल जाने की थी
वह उठा रहा था
किसी ढाबे में जूठे बर्तन
जबकि वह लिखना चाहता था
काली स्लेट पर
सफ़ेद चाक से उजाला
वह रगड़ रगड़ कर
चमका रहा था
कडाही और तवे की काली पेंदी
उसकी पीठ पर
होना चाहिए था बस्ता
वह तेज़ी से उठाता था
लकड़ी के गट्ठर
कोयले की बोरी
गेंहू धान का बोझ
उम्र बीतते देर कहाँ लगती
वह अब लिखता है
आसमान की छाती पर
कोलतार से बेकारी
सरकार कहती है
युवा है देश
तालियों की गडगडाहट में
वह ढूंढता है खुद को .
स्कूल जाने की थी
वह उठा रहा था
किसी ढाबे में जूठे बर्तन
जबकि वह लिखना चाहता था
काली स्लेट पर
सफ़ेद चाक से उजाला
वह रगड़ रगड़ कर
चमका रहा था
कडाही और तवे की काली पेंदी
उसकी पीठ पर
होना चाहिए था बस्ता
वह तेज़ी से उठाता था
लकड़ी के गट्ठर
कोयले की बोरी
गेंहू धान का बोझ
उम्र बीतते देर कहाँ लगती
वह अब लिखता है
आसमान की छाती पर
कोलतार से बेकारी
सरकार कहती है
युवा है देश
तालियों की गडगडाहट में
वह ढूंढता है खुद को .
दिनांक 05/09/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
शुक्रिया कुलदीप जी
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-09-2017) को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ; चर्चामंच 2718 पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १८०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सिसकियाँ - १८०० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सटीक प्रस्तुति.. बढिया।
जवाब देंहटाएंआज के खोखलेपन को उजागर करती प्रभावी रचना ... अनेकों भीड़ों का दर्द है ...
जवाब देंहटाएंकहीं भटके हुए युवा,कहीं भटकाए हुए युवा !
जवाब देंहटाएंबचपन ही छिन गया होता है कइयों का तो, उम्र से पहले ही हो जाते हैं युवा और प्रौढ़ जिम्मेदारियों के बोझ से...
फिर क्यों ना कहे सरकार कि युवा है देश !!!
विडंबना !
जवाब देंहटाएंसटीक शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना
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