मद्धम आंच पर
पकती हैं
नरम रोटियां
मद्धम आंच पर ही
पकता है
कुम्हार का दिया और घड़ा
दिया जो आग से जलकर
रौशनी देता है
घड़ा जो पानी को सहेजता है
अपने भीतर
मद्धम आंच में
नहीं होता है
अहंकार
अट्टहास
मद्धम आंच पर
सिझता है प्रेम
धीरे धीरे सहजता से .
पकती हैं
नरम रोटियां
मद्धम आंच पर ही
पकता है
कुम्हार का दिया और घड़ा
दिया जो आग से जलकर
रौशनी देता है
घड़ा जो पानी को सहेजता है
अपने भीतर
मद्धम आंच में
नहीं होता है
अहंकार
अट्टहास
मद्धम आंच पर
सिझता है प्रेम
धीरे धीरे सहजता से .
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंआज के तेज़ी के दौर में क्यों मद्धम रहना चाहता है ... इसलिए मधुरता ख़त्म हो रही है ... सटीक गहरी रचना ...
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