बुधवार, 24 जुलाई 2019

मैं शोक में हूँ

इस कायनात में 
हर पल कितने ही लोग मरते हैं 
जो मरते हैं 
होते हैं किसी के पिता 
होते हैं किसी की मां 
होते हैं किसी के भाई/बहिन
किसी का बेटा भी हो सकता है वह 
या बेटी ही 
या वही किसी और ओहदे/पद/रिश्ते का हो सकता है 
लेकिन जो मरता है 
होता है कोई न कोई 
यदि वह अनाम/अनजान भी हुआ तो क्या 
होता है वह मनुष्य ही 
फिर किसका शोक मनाया जाय 
किसका शोक न मनाया जाय 
यह तय करना मनुष्यता के बोध को कम करना है 
और जन्म मृत्यु के बंधन से परे होना ही 
प्राप्त करना है बुद्धत्व 

यही कारण है कि 
मैं हमेशा होता हूँ शोक में 
किसी के जीवित रहते हुए भी 
किसी के मृत्यु को प्राप्त करते हुए 
क्योंकि हर पल मर रही है मनुष्यता  !


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (25-07-2019) को "उम्मीद मत करना" (चर्चा अंक- 3407) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. वाह और उसे कोई शोक नहीं होता है जो देवता हो चुका होता है और वो देवता हो चुका है।

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  3. लाजवाब सृजन...चिन्तन योग्य..
    वाह!!!

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  4. सच है अपने लिए शोक मनाता है इंसान कि मेरा क्या होगा!
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  5. बहुत सुंदर भावुक कविता।

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  6. हमेशा की तरह ... लाजवाब और बहुत कुछ कहती हुयी ...

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