1.
जो संवेदनाएं नहीं होती
पत्थरों में
चिंगारी नहीं फूटी होती
इनके घर्षण से
न ही जन्म लेती आग।
2.
जो संवेदनाएं नहीं होतीं
पत्थरों में
कहाँ पिसी होती गेंहूं
पकी होती रोटी
3.
पत्थरों ने
अपनी साँसे रोक कर
सहा जो नहीं होता
छेनियों की धार
और हथौरों की चोट
गढ़े नहीं गए होते बुद्ध
4.
नदी की धाराओं से
करके प्रेम
कितने सुन्दर हो जाते हैं
पत्थर
5.
अपनी सपाट और काली पीठों पर
पत्थरों ने
लिखने दिया आखर
जिनसे फूटी क्रांतियाँ
6.
रास्ते में जो पत्थर
पैरों से टकराते हैं
वे गति तो कम करते हैं
लेकिन मंजिल के लिए
करते हैं सतर्क भी
7.
यूं ही कोई
नहीं बन जाता है
पत्थर
इसके लिए पृथ्वी के गर्भ में
असीम ताप और दाब में
रहना पड़ता है
युगों युगों तक
8.
पत्थर
जब रंगीन हो जाते हैं
बाज़ार के हिस्से हो जाते हैं
और वे मुस्कुराते हैं
हमारी बेबकूफियों पर
नादानियों पर
9.
पत्थर
पिघल भी जाते हैं
जब किसी मजदूर की
गाँठ वाली हथेलियाँ
छू जाती हैं उन्हें
10.
पत्थर को
पत्थर कहने की भूल करना
वास्तव में मानुष की बड़ी भूल है
वे कभी भी बदल सकते हैं
ईश्वर में।
वाह लाजवाब
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" 15 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-07-2019) को "कुछ नया होना भी नहीं है" (चर्चा अंक- 3397) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! पत्थरों के माध्यम से कितनी गहरी बात..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अलहदा से भाव पर सटीक मंथन देते।
जवाब देंहटाएंनम्बर हटा देने पर अति सुंदर कविता हो जाएगी
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
वाह ! बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंसादर
बेहद खूबसूरत सृजन
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