विश्व पुस्तक दिवस पर पढ़िए मेरी कुछ छोटी कविताएं - किताब।
१
क्या
तुमने भी
महसूस किया है
इन दिनों
खूबसूरत होने लगे हैं
किताबों के जिल्द
और
पन्ने पड़े हैं
खाली ।
२
क्या
तुम्हें भी
दिखता है
इन दिनों
किताबों पर पड़े
धूल का रंग
हो गया है
कुछ ज्यादा ही
काला
और
कहते हैं सब
आसमान है साफ़ ।
३
क्या
तुम्हें भी
किताबों के पन्ने की महक
लग रही है कुछ
बारूदी सी
और उठाये नहीं
हमने हथियार
बहुत दिनों से ।
४
क्या
तुमने पाया है कि
किताब के बीच
रखा है
ए़क सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर ।
क्या
तुमने भी
महसूस किया है
इन दिनों
खूबसूरत होने लगे हैं
किताबों के जिल्द
और
पन्ने पड़े हैं
खाली ।
२
क्या
तुम्हें भी
दिखता है
इन दिनों
किताबों पर पड़े
धूल का रंग
हो गया है
कुछ ज्यादा ही
काला
और
कहते हैं सब
आसमान है साफ़ ।
३
क्या
तुम्हें भी
किताबों के पन्ने की महक
लग रही है कुछ
बारूदी सी
और उठाये नहीं
हमने हथियार
बहुत दिनों से ।
४
क्या
तुमने पाया है कि
किताब के बीच
रखा है
ए़क सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर ।
किताबों को अकेला छोड़ देने के बाद यही होना था।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
श्वेता जी बहुत बहुत आभार
हटाएंकविता अच्छी लिखी लेकिन इन दिनों धूल से भरी नहीं रह गई ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेखा जी। सालों बाद आपका आना हुआ। जिस तरह पढ़ने की प्रवृत्ति कम हो रही है, इसे धूल ही कहेंगे। पुनः धन्यवाद।
हटाएंक्या
जवाब देंहटाएंतुमने पाया है कि
किताब के बीच
रखा है
ए़क सूखा गुलाब
जबकि
ताज़ी है
उसकी महक
अब भी
हम दोनों के भीतर ।
बार-बार पढ़ी जाने वाली पंक्तियाँ ... बेहद सुंदर भावाभिव्यक्ति
शुक्रिया विभा जी।
हटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंक्षणिकाएं जैसा असर छोड़ती छोटी कविताएं
धन्यवाद।
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