भूत
का नाम सुनते ही
डरते हैं हम
जबकि भूत ने अभी तक
कुछ भी नहीं बिगाड़ा हमारा।
कहते हैं भूत
आदमी को करता है परेशान
लेकिन देख रहा हूं मैं
आदमी को परेशान
भूख और लाचारी से
गरीबी और बेगारी से
दंगों और फसादों से
तो क्या समझ लिया जाय कि
भूख, गरीबी, बेरोजगारी और हिंसा
दुनिया के सबसे ख़तरनाक भूत हैं।
दादी नानी कहती थी
उल्टे होते हैं
भूत के पांव
वे उल्टी दिशा में चलते हैं
जबकि में देख रहा हूं
सत्ता को उलटी दिशा में चलते
मनुष्य के हितों के विपरीत दिशा में चलते
संकीर्ण मानसिकता में फंसा जनता का दोहन करते
तो क्या समझूं कि
सत्ता ही है वह डरावना भूत
जिसे किसी ने आज तक देखा नहीं
बस सुना ही है।
ठीक ही कहता है
नुक्कड़ पर बैठा अख़बार बेचने वाला बूढ़ा कि
अनुभव से बता रहा हूं
भूत से मत डरो
डरो तो उस आदमी से
जिसके भीतर का आदमी
मर चुका हो।
भूत को सही पहचाना आपने
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गिरिजा जी
हटाएंडर भूत हो चुके आदमी से लगता है :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर सृजन।
सही है।
हटाएंआदमियत का मर जाना ही शायद भूत हो जाना है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विमल जी
हटाएंसही सलाह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
बहुत बहुत धन्यवाद मयंक जी।
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंदरो आदमी से ... सच है इन भूतो की बात कोई नहीं करता ... जिसे नहीं देखा उसकी बात सब करते हैं ... लाजवाब ...
धन्यवाद सर . आप पढ़ लेते हैं तो रचना सफल हो जाती है .
हटाएंअरुण